राजेंद्र राठौर @ जांजगीर-चांपा. सक्ती में अवस्थित मरघट एवं घास भूमि में अवैध कब्जा को लेकर इन दिनों जहां जमकर बवाल मचा हुआ है। वहीं इस मामले से संबंधित नित नए-नए खुलासे हो रहे हैं। दो वर्ष पहले सक्ती के तत्कालीन तहसीलदार द्वारा जारी एक आदेश के सार्वजनिक होने के बाद इस मामले में फिर नया मोड़ आ गया है। तत्कालीन तहसीलदार ने अपने आदेश में व्यापारी नेता जगदीश प्रसाद बसंल द्वारा घास मद में दर्ज भूमि में अवैध कब्जा किए जाने की पुष्टि की थी तथा उन्हें सात दिवस के भीतर अनाधिकृत कब्जा छोडऩे की हिदायत दी थी। इसके बावजूद व्यापारी नेता ने अनाधिकृत कब्जा नहीं छोड़ा। इससे कई तरह के सवाल उठने लगे हैं।
दरअसल, मुक्तिधाम संरक्षण समिति सक्ती के अध्यक्ष संजय रामचंद्र द्वारा नगर की मरघट भूमि खसरा नंबर क्रमश: 1213/1, 1213/2, 1213/3, रकबा क्रमश: 1.00, 0.27, 8.00 एकड़ के सीमांकन के लिए सक्ती के अनुविभागीय अधिकारी (राजस्व) के समक्ष पिछले दिनों आवेदन प्रस्तुत किया गया था। उक्त आवेदन अग्रिम कार्यवाही के लिए तहसीलदार सक्ती को प्राप्त हुआ, जिसके परिपालन में तहसीलदार ने संबंधित भूमि के सीमांकन के लिए सक्ती के राजस्व निरीक्षक बुधवार सिंह सिदार के नेतृत्व में पटवारी भुवेश्वर राठौर, केशव पटेल, खगपति साहू, धनेश कुर्रे तथा पटवारी प्रमोद कश्यप की एक टीम गठित की है। ये टीम आगामी 20 दिसम्बर को मरघट भूमि का सीमांकन करेगी। मरघट भूमि के सीमांकन की तिथि तय होने के बाद से सक्ती में बवाल मचा हुआ है। वहीं सक्ती स्थित शासकीय भूमि पर अतिक्रमण से संबंधित नित नए-नए खुलासे भी हो रहे हैं। ‘दैनिक नवीन कदम’ को प्राप्त दस्तावेज के मुताबिक, सक्ती निवासी जगदीश प्रसाद बंसल पिता रामफल बंसल ने घास मद में दर्ज भूमि खसरा नंबर 1213/1, कुल रकबा 1.00 में से 1080 वर्ग फीट भूमि पर अवैध कब्जा कर मकान निर्माण करवाया है। इसी तरह घास मद में ही दर्ज भूमि खसरा नंबर 1213/3, कुल रकबा 8.00 एकड़ तथा खसरा नंबर 1218/1, कुल रकबा 3.37 एकड़ में इनके द्वारा बाउंड्रीवाल घेरा जा रहा है। ये आरोप हम नहीं लगा रहे, बल्कि तत्कालीन तहसीलदार के आदेश में इस बात का स्पष्ट उल्लेख है।
उपलब्ध दस्तावेज के मुताबिक, सक्ती में अविस्थत घास भूमि में अवैध कब्जा का यह मामला दो वर्ष पहले सक्ती तहसीलदार के न्यायालय में पहुंचा था, जिस पर राजस्व प्रकरण क्रमांक बी-121/2015-16 दर्ज कर पक्षकार शासन विरूद्ध जगदीश प्रसाद बंसल मामले में 21 अक्टूबर 2015 को आदेश पारित किया गया। तहसीलदार ने अपने आदेश में स्पष्ट किया है कि ग्राम सक्ती पटवारी हल्का नंबर 11 के उपरोक्त खसरा नंबर पर जगदीश प्रसाद बंसल पिता रामफल बंसल ने अनाधिकृत कब्जा किया है। आदेश में यह भी कहा गया है कि धारा 248 (1 एवं 2) भू-राजस्व संहिता के अंतर्गत अनाधिकृत निर्धारित कर जगदीश प्रसाद बंसल को सात दिवस के अंदर मकान एवं बाउंड्रीवाल हटा लिए जाने का अवसर दिया जाता है। सात दिवस के बाद मुख्य नगरपालिका अधिकारी उक्त अनाधिकृत कब्जे को हटाकर बेजाकब्जा हटाने का शुल्क वसूल कर सकेंगे। सक्ती तहसीलदार द्वारा पारित इस आदेश की प्रतिलिपि पृष्ठांकन क्रमांक/489/वा./तह./2015, दिनांक 16 नवंबर 2015 से अनुविभागीय अधिकारी (राजस्व) सक्ती, राजस्व निरीक्षक सक्ती, थाना प्रभारी सक्ती, हल्का पटवारी तथा शिकायतकर्ता को प्रेषित की गई थी। हद की बात तो यह है कि व्यापारी नेता जगदीश प्रसाद बंसल की रसूख के आगे तहसीलदार का आदेश भी यहां रद्दी की टोकरी में डाल दिया गया। बहरहाल, सक्ती में अवस्थित मरघट तथा घास मद में दर्ज भूमि में हुए अतिक्रमण को लेकर शहर के कुछ जागरूक नागरिक एक बार फिर आवाज बुलंद कर रहे हैं। ऐसे में अब देखना होगा कि उन्हें इस कार्य में आखिर किस हद तक सफलता मिलती है।
कलेक्टर न्यायालय ने खारिज की अर्जी
शासन विरूद्ध जगदीश प्रसाद बंसल मामले में सक्ती तहसीलदार द्वारा 21 अक्टूबर 2015 को पारित आदेश पर असंतोष जताते हुए पक्षकार जगदीश प्रसाद बंसल ने कलेक्टर न्यायालय में स्थगन के लिए अर्जी प्रस्तुत की थी, जिसे कलेक्टर ने खारिज कर दी। बताया जा रहा है कि कलेक्टर न्यायालय में अर्जी खारिज होने के बाद पक्षकार जगदीश प्रसाद बसंल ने बिलासपुर संभागायुक्त के न्यायालय में स्थगन के लिए अर्जी प्रस्तुत की है, जिस पर आगामी 12 दिसम्बर को सुनवाई होनी है। शिकायतकर्ता का कहना है कि 12 दिसम्बर को ही इस प्रकरण में फैसला पारित होने वाला है।
कमिश्नर कोर्ट के निर्णय का इंतजार
सक्ती में अवस्थित मरघट और घास भूमि में कुछ रसूखदार लोगों द्वारा किए गए अतिक्रमण का मामला लगातार तूल पकड़ता जा रहा है। नगरपालिका प्रशासन की भूमिका भी इस मामले में संदेह के दायरे में है, क्योंकि तत्कालीन तहसीलदार ने घास भूमि से जगदीश प्रसाद बसंल के अतिक्रमण को हटवाने की जिम्मेदारी मुख्य नगरपालिका अधिकारी सक्ती को सौंपी थी, लेकिन पालिका प्रशासन ने अतिक्रमण हटवाने कोई पहल नहीं की। वहीं यह पूरा मामला अब कमिश्नर के निर्णय पर टिका हुआ है। कमिश्नर यदि तत्कालीन तहसीलदार के आदेश को निरस्त कर अपीलार्थी के पक्ष में आदेश पारित करते हैं तो सक्ती में एक बार फिर उग्र स्थिति निर्मित होना तय है।
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