बुधवार, 29 मार्च 2017

डीजे ने एसपी को लिखा पत्र, कहा-सभी थानों में प्रदर्शित हो दिशा-निर्देश

गिरफ्तारी और हिरासत पूछताछ संबधी 11 सूत्रीय दिशा-निर्देश सुप्रीम कोर्ट से जारी

 

जांजगीर-चांपा. जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के अध्यक्ष एवं जिला न्यायाधीश राजेश श्रीवास्तव ने पुलिस अधीक्षक को पत्र प्रेषित कर सभी थाना परिसर में उच्चतम न्यायालय के गिरफ्तारी, हिरासत पूछताछ से संबंधित 11 सूत्रीय दिशा-निर्देश सुलभ स्थल पर प्रदर्शित करने की अपेक्षा की है।

जिला विधिक सेवा प्राधिकरण की सचिव विभा पाण्डेय ने 11 सूत्रीय दिशा-निर्देशों की विस्तृत जानकारी देते हुए बताया कि उच्चतम न्यायालय द्वारा डीके बसु बनाम स्टेट आफ वेस्ट बंगाल-(119)-एससीसी-216 में पारित आदेश अनुसार गिरफ्तारी, हिरासत पूछताछ संबंधित 11 सूत्रीय दिशा-निर्देश छग राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण बिलासपुर के ज्ञापन के परिप्रेक्ष्य में वर्ष 2014 में सभी थाना भवनों के दृश्य सुलभ स्थल पर प्रदर्शित कराया जाना सुनिश्चित कराया गया था। 

वर्तमान में ये दिशा-निर्देश जनसामान्य के अवलोकन योग्य स्थल पर प्रदर्शित कराए जा रहे हैं या नहीं, अगर न लगे हों तो लगवाया जाना सुनिश्चित कराए जाने के लिए जिले के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को पत्र प्रेषित किया गया है। 

नि:शुल्क विधिक सहायता योजना

प्राधिकरण की सचिव पाण्डेय ने आगे बताया कि अभिरक्षाधीन बंदियों को रिमाण्ड स्तर तक पैरवी करने के लिए विधिक सहायता की याचना किए जाने ’अभिरक्षाधीन बंदियों के नि:शुल्क विधिक सहायता योजना’ के तहत् अधिवक्ताओं का पैनल तैयार किया गया है। ऐसे अधिवक्ताओं के नाम व मोबाइल नंबर की सूची के बोर्ड सभी थाना परिसर में लगवाए गए हैं। इस संबंध में भी जिले के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को पत्र प्रेषित किया गया है कि उनका दृश्य सुलभ स्थल पर प्रदर्शन सुनिश्चित कराया जाए।

जारी 11 सूत्रीय दिशा-निर्देश

⇴.  बंदी बनाने और पूछताछ का काम करने वाले पुलिसकर्मी के नाम और पद की घोषणा करने वाली टैग स्पष्ट नजर आनी चाहिए। 

⇴.    गिरफ्तारी के समय एक मेमो तैयार करना जरूरी है, जिस पर गिरफ्तारी का समय व दिनंाक अंकित किया जाए। इस मेमो पर कम-से-कम ऐसे गवाह का दस्तखत कराया जाए, जो या तो उस क्षेत्र का प्रतिष्ठित नागरिक हो या हिरासत में लिए जा रहे व्यक्ति का हितैषी मित्र अथवा परिजन हो।

⇴.  ऐसे प्रत्येक बंदी को यह अधिकार है कि वह अपनी स्थिति की सूचना अपने मनपसंद शुभचिंतक को (चाहे वह कहीं भी रहता हो पुलिस के जरिए भिजवा दे अर्थात् बंदी बनाने के समय तैयार किए गए मेमो में गवाह के अलावा भी किसी एक शुभचिंतक को) बंदी व्यक्ति सूचना देना चाहे तो ऐसा जरूर कर सकता है। 

⇴.  पुलिस द्वारा पकड़ा गया व्यक्ति जिस शुभचिंतक को सूचना देना चाहे वह अगर किसी दूरस्थ नगर या जिले में हो तो उस संबंधित व्यक्ति की गिरफ्तारी के समय और उसे रखे जाने के जगह की सूचना जिले के विधिक सहायता संगठन और संबंधित क्षेत्र के पुलिस स्टेशन के जरिए गिरफ्तारी के आठ से बारह घंटे के अंदर तार से देनी (पुलिस के जरिए) जरूरी है।

⇴.  बंदी बनाए गए व्यक्ति को उसके अधिकार का आवश्यक रूप से ज्ञान कराया जाना जरूरी है कि वह अपने शुभचिंतक को (क्रमांक 3 व 4 के अनुसार) सूचना पहुंचा सकता है।

⇴   बंदी रखे जाने के स्थान पर केस डायरी में यह दर्ज करना जरूरी है कि बंदी द्वारा बताए गए किस व्यक्ति को उसकी सूचना दी गई और बंदी को किन पुलिस अफसरों की कस्टडी में रखा गया है।

⇴  अगर व्यक्ति आग्रह करे तो गिरफ्तारी के समय उसका शारीरिक परीक्षण कराया जाना चाहिए, उस समय यदि उसके शरीर पर कोई छोटे या बड़े चोट के निशान हो तो उसका विवरण दर्ज करना जरूरी है ऐसे निरीक्षण प्रपत्रों (इंस्पेक्शन मेमो) पर पुलिस अधिकारी के साथ बंदी व्यक्ति का भी हस्ताक्षर जरूरी है और उसकी प्रतिलिपि बंदी को भी दी जाए।

⇴ पुलिस कस्टडी में रखे गए बंदी का प्रत्येक 48 घंटों में एक बार ऐसे प्राधिकृत डाक्टरी जंाच के लिए प्रस्तुत करना जरूरी है, जिसकी स्थापना प्रदेश के स्वास्थ्य लोक सेवा संचालक द्वारा तदाशय के संदर्भ में की हो।

⇴ गिरफ्तारी के मेमो सहित सभी संबंधित प्रपत्रों की प्रतिलिपियंा इलाके के दण्डाधिकारी के पास (इसके रिकार्ड के लिए) भेजी जानी चाहिए।

⇴पूछताछ के दौरान बंदी व्यक्तियों को अपने वकील से मिलने की अनुमति देना जरूरी है, हालाकि समूची पूछताछ के दौरान वकील को बैठाए रखने की अनुमति से इसका आशय नहीं है।

⇴ पुलिस के सभी जिला व प्रदेश मुख्यालयों में एक ऐसा पुलिस कंट्रोल रूम होना वंाछित है, जहां प्रत्येक व्यक्ति गिरफ्तारी की सूचना में रखे जाने के स्थान की जानकारी 12 घंटे के अंदर एक ऐसे नोटिस बोर्ड पर अंकित की जाए, जिसे कोई भी आसानी से व स्पष्ट रूप से देख सके।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें