गुरुवार, 25 मई 2017

सोलह श्रृंगार करके पति की दीर्घायु के लिए की कामना, जगह-जगह सुहागिनों ने की वट-सावित्री की पूजा

जांजगीर-चांपा. गुरूवार को जिले भर में जगह-जगह सुहागिनों ने वट-सावित्री पूजा करके अपने पति की दीर्घायु के लिए ईश्वर से कामना की। सोलह श्रृंगार करके व्रति महिलाओं ने वट-पीपल वृक्ष के 108 फेरे भी लगाए। इस दौरान जगह-जगह वट-सावित्री कथा भी कही गई।

वट सावित्री पूजा के अवसर जिले में सुहागिनों ने 16 श्रृंगार करके बरगद के पेड़ के चारों ओर फेरे लगाकर अपने पति के दीर्घायु होने की प्रार्थना की। पूजा स्थल पर पहुंची बुजुर्ग महिलाओं ने बताया कि ऐसी मान्यता है कि इसी दिन मां सावित्री ने यमराज के फंदे से अपने पति सत्यवान के प्राणों की रक्षा की थी। भारतीय धर्म में वट सावित्री पूजा स्त्रियों का महत्वपूर्ण पर्व है, जिसे करने से हमेशा अखंड सौभाग्यवती रहने का आशीष प्राप्त होता है। 

इसलिए की वट-सावित्री की पूजा

पंडितों के अनुसार, कथाओं में उल्लेख है कि जब यमराज सत्यवान के प्राण लेकर जाने लगे तब सावित्री भी यमराज के पीछे-पीछे चलने लगी। यमराज ने सावित्री को ऐसा करने से रोकने के लिए तीन वरदान दिए। एक वरदान में सावित्री ने मांगा कि वह सौ पुत्रों की माता बने। यमराज ने ऐसा ही होगा कह दिया। इसके बाद सावित्री ने यमराज से कहा कि मैं पतिव्रता स्त्री हूं और बिना पति के संतान कैसे संभव है।

पूजा के बाद बांटा चने का प्रसाद

वट-सात्रिवी की कथा कहते हुए पंडितों ने बताया कि सावित्री की बात सुनकर यमराज को अपनी भूल समझ में आ गई कि वह गलती से सत्यवान के प्राण वापस करने का वरदान दे चुके हैं। इसके बाद यमराज ने चने के रूप में सत्यवान के प्राण सावित्री को सौंप दिए। सावित्री चने को लेकर सत्यवान के शव के पास आईऔर चने को मुंह में रखकर सत्यवान के मुंह में फूंक दिया। इससे सत्यवान जीवित हो गया, इसलिए वट सावित्री व्रत में चने का प्रसाद चढ़ाने का नियम है। पूजा के बाद व्रतियों ने चने का प्रसाद बांटकर बड़े-बुजुर्गों से आशीर्वाद प्राप्त किया।

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