जांजगीर-चांपा. पंचम मूल जगतगुरू भक्तियोग रसावतार 1008 स्वामी कृपालु महाराज की कृपा प्राप्त प्रचारिका श्रीश्वरी देवी द्वारा चौथे दिन के प्रवचन में बताया गया कि भगवान को भगवत कृपा द्वारा ही जाना जा सकता है, और भगवत कृपा शरणागति द्वारा ही मिलेगी।
सांस्कृतिक नगरी नैला में आयोजित दिव्य दार्शनिक प्रवचन के चौथे दिन उन्होंने वेदों का उदाहरण देते हुए कहा कि जो यह समझता है कि ईश्वर समझने का विषय है वह नासमझ है। भगवान इन्द्रिय, मन, बुद्धि से परे है। हमारी इन्द्रिय, मन, बुद्धि मायिक है, मटीरियल है, किन्तु भगवान दिव्य है, इसलिए हमारी मायिक इन्द्रिय, मन, बुद्धि दिव्य भगवान को ग्रहण नहीं कर सकती। महानतम् बुद्धिमानों की बुद्धि से भी भगवान को हमारी मायीक इन्द्रिय, मन, बुद्धि से नहीं जाना जा सकता, बल्कि जिस बड़भागी जीव पर भगवान कृपा कर दे और अपनी दिव्य शक्ति प्रदान कर दे, वही भाग्यशाली जीव इस अज्ञेय भगवान को पूर्णतया जान लेता है।
उन्होंने कहा कि वे ही इस अदृश्य ईश्वर का पूर्णतया दर्शन कर लेता है, किन्तु भगवान की यह कृपा भी कोई आकस्मिक घटना नहीं है कि एक पर कृपा हो जाए और दूसरे पर ना हो। अपितु ये कृपा भी किसी आधार पर आधारित है। वह किसी कारण की अपेक्षा रखती है, वह कारण क्या है जिसके पूर्ण करने पर भगवान की कृपा होती है। इस प्रश्न के उत्तर में वेद गीता, भागवत, रामायण के साथ-साथ अन्य धर्मग्रंथों तथा बाइबिल, कुरान शरीफ, गुरूग्रंथ साहिब इत्यादि से प्रमाण प्रस्तुत करते हुए कहा कि भगवान शरणागत पर ही कृपा करते हैं। अर्थात हमें भगवान की कृपा प्राप्त करने के लिए भगवान के शरण में जाना होगा।
सत्यसंग,ज्ञानशिक्षा, गीता सारतत्व, गीतास्मृति आदि के लिए, आशीष कुमार प्यासी मो-W.No-+091-8319220533
जवाब देंहटाएं