बुधवार, 21 जून 2017

OMG! सिलिकोसिस से मर रहे श्रमिक, सरकार ने करवा दी टीबी जांच, जिले के कई उद्योगों में कार्यरत श्रमिकों में सिलिकोसिस के लक्षण

राजेंद्र राठौर@जांजगीर-चांपा. जिले में संचालित कई उद्योगों में कार्यरत श्रमिकों में गंभीर बीमारी सिलिकोसिस के लक्षण मिले हैं। इससे अंदेशा है कि उन उद्योगों में कार्यरत कई श्रमिकों की मौत भी इसी बीमारी से हुई होगी, लेकिन राज्य शासन के आदेश पर जिला प्रशासन ने जिले के सभी उद्योगों में कार्यरत श्रमिकों की टीबी जांच करवा दी है, जो समझ से परे है। खास बात यह है कि उद्योगों में कार्यरत श्रमिकों के स्वास्थ्य परीक्षण के नाम पर महज खानापूर्ति की जा रही है।

यह कल्पना करना कितना असहज कर देता है कि कोई रोग व्यवसाय से संबंधित होता है, लेकिन यह सच है। सिलिकोसिस नामक रोग व्यवसाय से संबंधित होता है, जो कि धूल में मौजूद सिलिका के कणों के कारण मनुष्यों में हो सकता है। भले ही इस रोग के बारे में आज बात की जा रही हो, लेकिन यह रोग अत्यंत पुराना है। यह रोग क्षेत्र विशेष में नहीं सिमटा होता है, बल्कि यह पूरे विश्व में व्याप्त है और हर साल इसके चलते हजारों लोगों की जानें जाती हैं। इस गंभीर और लाइलाज बीमारी की चपेट में जिले के श्रमिक भी आ गए हैं। जिले में संचालित कुछ उद्योगों में कार्यरत श्रमिकों की हाल ही में कराए गए स्वास्थ्य परीक्षण में इस बीमारी के लक्षण पाए गए हैं। चांपा के अरविंद इण्डस्ट्रीज में कार्यरत महिला श्रमिक सरिता की मौत को भी इसी बीमारी से जोडक़र देखा जा रहा है। औद्योगिक सुरक्षा विभाग में हाल ही में लैब से पहुंची जांच रिपोर्ट से पता चला है कि संबंधित उद्योग में सुरक्षा मानकों का पालन नहीं होने की वजह से महिला श्रमिक सरिता की मौत होने की आशंका है। जांच रिपोर्ट से स्पष्ट हुआ है कि अरविंद इण्डस्ट्रीज में सिलिका की मात्रा सीमा से अधिक पाई गई हैं। इससे संभावना प्रबल हो गई है कि जिले के अन्य उद्योगों में कार्यरत कई श्रमिक भी इस गंभीर बीमारी की चपेट में होंगे, जो इसे टीबी समझकर इलाज करवा रहे हैं। दिलचस्प बात यह है कि जिले के कई उद्योगों में कार्यरत श्रमिकों में सिलिकोसिस की संभावना है, जबकि शासन के आदेश पर जिला प्रशासन द्वारा कुछ दिन पहले ही सभी उद्योगों में कार्यरत श्रमिकों का टीबी परीक्षण करवा दिया गया है। इससे असल बीमारी सामने आना मुश्किल है। वहीं जो श्रमिक सिलिकोसिस से पीडि़त होंगे, उन्हें टीबी से पीडि़त समझकर इलाज शुरू कराने की तैयारी जिला प्रशासन द्वारा की जा रही है।
 

फेफड़ों से जुड़ा रोग है सिलिकोसिस

सिलिकोसिस पुरातन समय से अनेक नामों से जाना गया है, जिसमें माइनर्स थेसिस, ग्राइंडर्स अस्थमा, पॉटर्स रॉट कुछ प्रमुख नाम हैं। यह फेफड़ों से जुड़ा एक रोग होता है। सिलिकोसिस नाम का सर्वप्रथम प्रयोग 1870 में अधिवक्ता अचिले विस्कोन्ती ने किया था। इस रोग के इतिहास पर नजर डालें तो यह पता चलता है कि 16वीं शताब्दी में अग्रिकोला ने लिखा था कि यूरोप के कर्पेथेइओन नामक पर्वत की खदानों में कई महिलाओं ने 7-7 पतियों से शादी की और वे सभी पुरूष सिलिको-तपेदिक के कारण कम उम्र में मर गए थे। उत्तरी थाइलैंड में एक पूरे गांव को विधवाओं का गांव कहा जाता है, क्योंकि वहां पर बहुत लोग इस बीमारी की वजह से मर गए थे। सिलिकोसिस फेफड़ों की एक लाइलाज बीमारी है, जो धूल में मौजूद मुक्त सिलिका के कणों को अंत:श्वसन करने के कारण होती है। जानकारों की मानें तो यह बीमारी होने के बाद इसमें सुधार होने की संभावना नहीं रहती, लेकिन इस रोग पर नियंत्रण पाया जा सकता है। यह रोग सिलिका मिश्रित धूल के संपर्क के कारण होता है। इसलिए व्यक्ति जितने लंबे समय तक सिलिका मिश्रित धूल के संपर्क में रहता है, उतना ही अधिक इस रोग के चपेट में आता है। ऐसा तभी होता है जब उनका कार्य स्थल ऐसा हो, जहां पर उन्हें चट्टानों को तोडऩा हो, रेत एकत्रित करना हो, पत्थर, अयस्क आदि को तोडऩा या बारीक चुरा करना शामिल होता है। इन सभी कार्यों में सिलिका उत्सर्जित होती है। इसके अतिरिक्त खदानों, कांच के कारखानों, मृत्तिका आदि जगहों पर होने वाले कार्यों में भी सिलिका मिश्रित धूल के कणों के संपर्क में आते हैं। बालू विस्फोट एक सबसे खतरनाक प्रक्रिया है, जिसमें सिलिकोसिस होने का सबसे अधिक खतरा रहता है।
 

ऐसे घर करती है यह गंभीर बीमारी

जानकारों की मानें तो तीव्र विस्फोट में अगर निकलने वाले मलबे में सिलिका हो तो सिलिकोसिस होने की संभावना रहती है। सूखी खुदाई, रेत या कंक्रीट को साफ  करना, दबाव में वायु का प्रयोग आदि जैसी प्रक्रियाएं धूल के बादलों का निर्माण करते हैं, ये धूल के बादल श्वसन से फेफड़ों तक सिलिका पहुंचाने में सहायक होते हैं। सिलिका के 3 स्वरूप होते हैं, जिनमें स्फटिक, सूक्ष्म स्फटिक और अक्रिस्टलीय शामिल है। मुक्त सिलिका शुद्ध सिलिकोन डाइऑक्साइड होता है। सिलिकोसिस के कारण फेफड़ों में तन्तुमयता और वातस्फिति होती है। सिलिकोसिस का प्रकार और उसकी उग्रता इस बात पर निर्भर करती है कि सिलिका के संपर्क में रोगी कितने समय तक रहा है। सिलिकोसिस जीर्ण, त्वरित और तीक्ष्ण आदि रूप में पहचाना जाता है। सिलिकोसिस से ग्रसित व्यक्तियों को तपेदिक होने की संभावना भी होती है, तब इसे सिलिको तपेदिक कहते हैं। श्वसन के कार्यों की क्षमता में कमी बड़े पैमाने पर तन्तुमयता और वातस्फिति होने से होती है। इसके साथ कभी-कभी दिल का दौरा भी मौत का कारण बनता है। देश में राष्ट्रीय खनिक स्वास्थ्य संस्थान सिलोकोसिस के रोगियों की पहचान और रोग का निदान करने में अग्रणी भूमिका निभा रहा है।

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