रविवार, 8 अक्टूबर 2017

उधर खून के आंसू बहा रहे जगदीश के परिजन, इधर बोनस तिहार की खुशियां मना रहा जिला प्रशासन, घडिय़ाली आंसू बहाने के बाद विपक्षी दलों ने खुद को किया किनारा

राजेन्द्र राठौर@जांजगीर-चांपा. ग्राम कुरदा निवासी किसान जगदीश बघेल द्वारा कलेक्टर जनदर्शन में जहर सेवन कर आत्महत्या किए जाने के मामले में जमकर राजनीति हुई। विपक्षी दलों ने घटना के तत्काल बाद इस मुद्दे को भुनाने कोई कसर नहीं छोड़ा। प्रमुख विपक्षी दलों ने किसान जगदीश के घर पहुंचकर उनके परिजनों के आगे खुद को उनका सबसे बड़ा हितैषी बताया। घडिय़ाली आंसू बहाए और परिजनों के समक्ष बड़े-बड़े आश्वासन भी दिए, लेकिन चुनावी वायदों की तरह उन आश्वासनों को भुला दिया गया। वहीं किसानों का हितैषी होने का दावा करने वाली राज्य सरकार के नुमाइंदों ने भी हकीकत जाने बगैर किसान जगदीश को सूदखोर बना दिया। इस घटना को लेकर जहां किसान जगदीश के परिजन अभी भी खून के आंसू बहा रहे हैं। वहीं जिला प्रशासन बोनस तिहार की खुशियां मनाने में मशगुल है। 

उल्लेखनीय है कि जिला मुख्यालय जांजगीर के हाईस्कूल मैदान में नौ अक्टूबर को बोनस तिहार कार्यक्रम आयोजित है। प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह इस कार्यक्रम में जिले के एक लाख 26 हजार 156 किसानों को समर्थन मूल्य पर बेचे गए धान का 211 करोड़ 48 लाख 27 हजार रुपए का बोनस प्रदान करेंगे। बोनस तिहार की खुशियां जिला प्रशासन जोरशोर से मना रहा है, लेकिन उसी प्रशासन को ग्राम कुरदा के उस किसान के परिजनों की कतई चिंता नहीं है, जिसने कुछ दिनों पहले कलेक्टर जनदर्शन में जहर सेवन कर मौत को गले लगाया था। कुरदा निवासी किसान जगदीश बघेल के परिजनों के मुताबिक, वह सूदखोरों के चंगुल में बुरी तरह फंसा हुआ था। सूदखोरों ने उसकी जमीन तक हथिया ली थी, जिसकी शिकायत वह लगातार जिला प्रशासन से कर रहा था, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हो रही थी। इससे हताश जगदीश ने कलेक्टर जनदर्शन में जहर सेवन कर अपनी ईहलीला समाप्त कर ली। इस घटना को लेकर प्रमुख विपक्षी दलों ने तत्कालिक ऐसे तेवर दिखाए, मानो जगदीश के परिजनों को न्याय दिलाने वे कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। मगर हकीकत आज सबके सामने है। किसान जगदीश की मौत पर भी राजनीति हो गई है। यही वजह है कि घटना के 20 दिनों बाद भी जगदीश के परिजनों को न्याय नहीं मिला है। वे खून के आंसू बहा रहे हैं। किसान जगदीश की मौत ने समूचे सरकारी सिस्टम पर सवाल खड़ा किया है। क्या वाकई जगदीश सूदखोर था? यदि नहीं तो उसे मौत को आखिर क्यों गले लगाना पड़ा? इस घटना को लेकर जिला प्रशासन ने अब तक क्या कदम उठाए? इस तरह के ढेरों सवाल हैं, जो प्रशासन की उदासीनता और विपक्षी दलों की चुप्पी से धीरे-धीरे जमींदोज हो रहे हैं। इससे ऐसा लग रहा है कि शासन-प्रशासन को किसान जगदीश की मौत से वाकई कोई मतलब नहीं है। वहीं विपक्षी दलों ने भी अपनी राजनीतिक रोटी सेंक ली है, इसलिए उन्होंने भी अब खुद को इस मामले से किनारा करना बेहतर समझ लिया है। ऐसी परिस्थितियों में किसान जगदीश के परिजनों को न्याय मिलता फिलहाल नहीं दिख रहा है।
 

सरकारी खजाने को दीमक की तरह चट कर रहे अफसर

जिला प्रशासन का दावा है कि जांजगीर-चांपा जिला प्रदेश का एकमात्र शत-प्रतिशत सिंचित जिला है। यहां के 90 फीसदी भू-भाग की सिंचाई नहरों से होती है, लेकिन हकीकत इससे परे है। प्रशासनिक अफसर उन नहरों से सिंचाई का दावा कर रहे हैं, जो बाबा आदम के जमाने में निर्मित हुई थी। मौजूदा हालात ऐसे हैं कि उन नहरों में ठीक से पानी का प्रवाह तक तो हो नहीं रहा है, ऐसे में खेतों की सिंचाई की बात तो छोड़ ही दीजिए। सिंचाई की विकराल समस्या से जूझ रहे नवागढ़, बलौदा, पामगढ़ और जैजैपुर क्षेत्र के किसान अपनी आंखों के सामने धान की फसल को बर्बाद होता देख रहे हैं। वे तिल-तिल मर रहे हैं, लेकिन उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है। एसी कमरों में बैठे प्रशासनिक अफसर केवल कोरा आश्वासन देकर सरकारी खजाने को दीमक की तरह चट कर रहे हैं। हद की बात तो यह है कि जिला प्रशासन, उन्हीं किसानों और ग्रामीणों को बोनस तिहार में शामिल करवाने के लिए कार्यक्रम स्थल पर ला रहा है, जो उसकी राग में राग अलापने एक पैर पर खड़े हैं। वहीं उन किसानों को इस कार्यक्रम और मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह से दूर रखने की पूरी कोशिश की जा रही है, जो ऐनवक्त पर अफसरों के काले कारनामों का भांडा फोड़ सकते हैं।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें