शनिवार, 25 नवंबर 2017

जानिए प्रथम अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश ने क्यों कहा- घर से लेकर समाज तक नहीं मिला महिलाओं को समान हक

डोल कुमार @ डभरा. निवेदिता फाउन्डेशन द्वारा आक्सफाम इंडिया के सहयोग से अग्रसेन भवन डभरा में समाज के प्रभावकारी व्यक्तियों का महिला हिंसा एवं कानूनी ढांचा विषय पर एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया।  कार्यशाला का प्रमुख उद्देश्य महिलाओं के साथ होने वाले हिंसा में प्रभावकारी व्यक्तियों का कानूनी ढांचा के तहत् घरेलू हिंसा या अन्य प्रकार के हिंसा से प्रभावित महिला को कानूनी न्याय दिलाने में सहयोग करने की भूमिका को मजबूती देना था। 

कार्यशाला की मुख्य अतिथि प्रथम अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश सत्यभामा अजय दुबे थी। वहीं अन्य अतिथियों के रूप में द्वितीय अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश वंदना दीपक देवांगन, व्यवहार न्यायाधीश वर्ग वर्ग दो भास्कर मिश्रा, बाल संरक्षण इकाई डभरा के विरेन्द्र सिंह जायसवाल, अनुविभागीय अधिकारी (पुलिस) डभरा सीजे तिर्की एवं सृजन केन्द्र के अध्यक्ष मुरलीधर चंद्रम ने कार्यक्रम में अपनी उपस्थिति दी। इस दौरान कार्यशाला के आयोजक ने बताया कि दुनिया में बढ़ती हिंसा के मददेनजर पिछले कई सालों से अंतर्राष्ट्रीय स्तर से लेकर ग्रामीण स्तर तक 25 नवम्बर से 10 दिसम्बर तक विश्व भर में संयुक्त रूप में 16 दिवसीय अभियान चलाकर महिला हिंसा पखवाड़ा के रूप में जनजागरूकता लाने का प्रयास किया जाता है। इसी तारतम्य में निवेदिता फाउन्डेशन द्वारा महिला हिंसा और कानूनी ढांचा पर प्रभावकारी व्यक्तियों के संदर्भ में कार्यशाला का आयोजन किया गया है। 

कार्यशाला को संबोधित करते हुए प्रथम अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश सत्यभामा अजय दुबे ने कहा कि अभी तक महिलाओं को घर से लेकर समाज तक समान हक नहीं मिला है। आज भी घर, परिवार और समाज के हर निर्णय पुरूष ही ले रहे हैं। महिलाएं दिमाग से भी पुरूषों से कम नहीं हैं और काम भी उनके बराबर ही करती हैं, फिर भी महिलाएं पीछे हैं। उन्होंने स्वयं का उदाहरण देते हुए कहा कि वे भी अपने बच्चों को पति के पास छोडक़र जाती हैं। हर मॉं-बाप के मन में यह डर बना रहता है कि बेटी यदि घर से बाहर जाएगी तो उसके साथ दुव्र्यवहार की घटना हो सकती है, यह डर हमारे मन में है। कानून महिलाओं को सुरक्षा देने के लिए बनाए गए हैं। बेटियों को स्कूल जाने से रोकना, खेलने से रोकना, उचित चिकित्सा सुविधा नहीं देना भी हिंसा है। जब भी कोई महिला न्यायालय में आती है तो भरण पोषण, निवास या साझा निवास का आदेश दिया जाता है। उन्होंने कहा कि अनाचार की घटना होती है तो महिलाओं को तुरंत नहीं नहाना चाहिए, क्योंकि उनके कपड़े से बहुत सी बातें प्रमाणित होती है। यदि रिपोर्ट करने में विलंब होता है तो विलंब होने का कारण भी दर्शाया जाना चाहिए। कार्यस्थल पर यौन शोषण भी एक अपराध है। द्वितीय अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश वंदना दीपक देवांगन ने कहा कि हिंसा केवल मारपीट करना ही नहीं, बल्कि महिला के इच्छा का सम्मान नहीं करना, भूखों को खाना नहीं देना, मूलभूत आवश्यकताओं से वंचित करना भी है। उन्होंने हरियाणा का उदाहरण देते हुए कहा कि आज हरियाणा में बेटियां बहुत कम हो गई हैं। शादी के लिए दूसरे राज्यों से बेटियां खरीदकर लाई जाती हैं। हर पुरूष की नजर और सोच सकारात्मक होनी चाहिए। बेटी, बहन, पत्नी और मां का सहयोग करें, क्योंकि हमारा समाज महिलाओं को आश्रित मानता है। यदि महिलाएं सक्षम नहीं होंगी तो दूसरों पर आश्रित रहेंगी। ऐसी स्थिति में वे घर से निकलने के बाद कहां जाएंगी। 

व्यवहार न्यायाधीश वर्ग वर्ग दो भास्कर मिश्रा ने कहा कि घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 में मारपीट रोकना, बच्चों को संरक्षण देना, महिलाओं को संरक्षण देने का प्रावधान है। हिंसा तभी रूक सकती है, जब हम नैतिक रूप से मजबूत होंगे, लेकिन हम अपने नैतिक मूल्यों को छोडक़र अन्य विषयों को अपने दिमाग में लाते हैं, जिसके चलते इस तरह की घटनाएंं घटित हो रही है। आज एक महिला न्यायालय तक पहुंच कर केस दर्ज करते हुए चार केस और लगाती है, उसके पीछे कौन है? हम जब इस समाज की प्रताडि़त बेटियों और महिलाओं का बंद कमरे में बयान लेते हैं तो उनकी व्यथा और दर्द सुनकर हमें रोना आता है कि हम किस असंवेदनशील समाज में आज जी रहे हैं, जहां नैतिकता दिनों-दिन गिरती जा रही है। बाल संरक्षण अधिकारी विरेन्द्र सिंह जायसवाल ने ने पॉक्सो एक्ट के संबंध में जानकारी दी। कार्यशाला में क्षेत्र की महिलाएं एवं पुरूष बड़ी संख्या में शामिल हुए।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें