संगीता सिंह राठौर@जांजगीर-चांपा. मकर संक्रांति के दिन अन्न और तिल दान का विशेष महत्व है। कहा जाता है कि इस दिन नदी-सरोवर में स्नान-ध्यान करके गुप्त दान करने से पुण्य की प्राप्ति के साथ सुख-समृद्धि मिलती है, लेकिन जिले में कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो इन सबसे हटकर कुछ अलग दान कर लोगों को नई जिंदगी दे रहे हैं। इनमें से कई नेत्रदानी हैं तो कई लोग देहदान करने वाले हैं। जरूरतमंदों की मदद करके इन लोगों ने अनूठी मिसाल पेश की है।

मकर संक्रांति के साथ इस वर्ष कई शुभ संयोग बन रहे हैं। सबसे पहले तो रविवार के दिन मकर संक्रांति का होना ही अच्छा संयोग है, क्योंकि रविवार के स्वामी ग्रह सूर्यदेव है। अपने दिन में ही सूर्य उत्तरायण हो रहे हैं। इस दिन सर्वाथ सिद्घि योग बना है, जिसे सभी सिद्घियों को पूर्ण करने में सक्षम माना गया है। तीसरा इस दिन प्रदोष व्रत भी है। ज्योतिषीय गणना के अनुसार, इस दिन ध्रुव योग भी बना हुआ है। ऐसे में इस मकर संक्रांति पर किया गया दान-पुण्य और पूजन का अन्य दिनों की अपेक्षा हजारों गुना पुण्य प्राप्त होगा और ग्रह दोषों के प्रभाव से भी आप राहत महसूस कर सकते हैं। इस मौके पर राशि के अनुसार कुछ वस्तुओं का दान विशेष लाभदायी रहेगा। मकर संक्रांति के इस पावन अवसर पर कुछ दानवीरों के व्यक्तित्व से हम आपको अवगत करा रहे हैं, जो रियल लाइफ के हीरो हैं।
देहदान कर बने दधीचि

नैला निवासी सूरजमल जैन अपना देहदान कर आधुनिक युग के दधीचि बने हैं। छह वर्ष पहले उन्होंने अपने जन्मदिन के अवसर पर कुछ अलग करने की ठानी थी। इस दिन उन्होंने अपने परिजनों के बीच देहदान करने की इच्छा व्यक्त की, जिसे उनके परिजनों ने सहर्ष स्वीकार किया। करीब चार साल पहले नैला में उन्होंने अंतिम सांस ली। इसके बाद परिजनों ने विधि-विधान से अंतिम यात्रा निकालकर उनके पार्थिव देह को छत्तीसगढ़ आयुर्विज्ञान संस्थान बिलासपुर के सुपुर्द किया। स्व. जैन का देह चिकित्सा विज्ञान के छात्रों की पढ़ाई में मददगार साबित हुआ।
जीवन में फैलाया उजाला

लोग कहते हैं कि नेत्रदान कर हम न केवल एक व्यक्ति को संसार देखने लायक बनाते हैं, बल्कि एक परिवार को रोटी देते हैं। नेत्रदान की इस संकल्पना को नैला निवासी सुरेश जैन के पुत्र स्वयं जैन (12) ने अपने परिवार की मदद से पूरा कर दिखाया है। अगस्त 2014 में एक सडक़ दुर्घटना में स्वयं जैन गंभीर रूप से घायल हो गया था। उपचार के दौरान रायपुर के अंबेडकर अस्पताल में उसकी मौत हो गई। मृत्यु के बाद स्वयं जैन के परिजनों ने उसके दोनों नेत्रों को दान करने की इच्छा जताई। स्व. स्वयं जैन के कार्निया से आज एक युवक दुनिया देख रहा है।
देहदान का लिया संकल्प

देहदान का संकल्प लेकर नैला निवासी शोभा जैन ने एक अनूठी मिसाल पेश की है। यह संकल्प उन्होंने अपने ससुर स्व. सूरजमल जैन से ही लिया है। छह वर्ष पहले शोभा ने अपने ससुर सूरजमल जैन के जन्मदिवस के अवसर पर उनके देहदान करने संबंधी अनुकरणी संकल्प से प्रेरणा लेकर मृत्यु उपरांत देहदान करने का संकल्प लिया। देहदान का संकल्प लेने के बाद उन्होंने बिलासपुर स्थित सिम्स में संकल्प पत्र भी भरा। उनका मानना है कि मृत्यु के बाद शरीर के अंग चिकित्सा विज्ञान के विद्यार्थियों के प्रशिक्षण में मददगार साबित होंगे। इनके पति महेन्द्र जैन ने भी देहदान करने का संकल्प लिया है।
मृत्यु के बाद भी रहेंगे जिंदा
युवा कृषि वैज्ञानिक चंद्रशेखर खरे और उनकी पत्नी सुमन खरे ने मृत्यु के बाद भी दूसरों की सेवा करने के ध्येय

से अपनी आंखों के अलावा शरीर को भी दान किया है। दरअसल, पामगढ़ निवासी चंद्रशेखर खरे वर्तमान में कृषि विज्ञान केंद्र जांजगीर में वैज्ञानिक के पद पर कार्यरत है। उनके पिता गणेशराम खरे की दिली इच्छा थी कि उनका पुत्र ऐसा कोई काम करे, जिससे दुनिया में उसका नाम हो। कृषि वैज्ञानिक खरे जब कक्षा बारहवीं की पढ़ाई कर रहे थे, तभी उन्होंने आंख व देहदान करने की घोषणा की थी, लेकिन विधिवत रूप से इस घोषणा को अब अंजाम दिया गया। उनके इस संकल्प से प्रेरित होकर उनकी पत्नी सुमन खरे ने भी अपनी आंख व शरीर दान करने की घोषणा की है। खरे दंपति ने बिलासपुर स्थित सिम्स जाकर विधिवत घोषणा फार्म जमा किया है।
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