जांजगीर-चांपा. सांसद निधि में हुए करोड़ों के भ्रष्टाचार मामले की फाइल कलेक्टोरेट में सात माह से दबी हुई है। चूंकि यह मामला सांसद से जुड़ा हुआ है, इसके चलते अफसर भी इस मामले में हाथ डालने से कतरा रहे हैं। दस्तावेजों के मुताबिक सांसद ने खुद अपने लेटरहेड में अनुशंसा कर 61 निजी संस्थानों को क्रियान्वयन एजेंसी बनाया और उनके नाम चेक भी जारी हो गए। यदि इस मामले में निष्पक्ष जांच होती है तो कई अफसरों की कुर्सी भी हिल जाएगी।
बता दें कि कुछ लोगों ने सांसद निधि में हुए भ्रष्टाचार की पूरी जानकारी सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत प्राप्त की है। करीब एक साल के मेहनत के बाद प्राप्त दस्तावेजों को खंगालने पर पता चला कि किस तरह सांसद निधि में बंदरबाट किया गया है। मामले में 762 पन्नों की शिकायत कलेक्टर से लेकर केंद्र स्तर तक सितंबर 2017 में की गई थी। सांसद कमला पाटले ने भी इस मामले में शिकायत की है। उस समय तत्कालीन कलेक्टर डॉ. एस भारतीदासन ने आनन-फानन में एक जांच कमेटी बनाई थी। इस कमेटी के अध्यक्ष अपर कलेक्टर डीके सिंह हैं, लेकिन सात माह बाद भी अपर कलेक्टर ने सांसद निधि मामले की फाइल तक नहीं देखी है। मामले में जब पड़ताल की गई, तब पता चला कि राजनीतिक दबाव के चलते इस मामले में जांच ही शुरू नहीं हो पा रही है, क्योंकि यह सांसद से जुड़ा मामला है। इसके अलावा जब मामले की फाइल खंगाली जाएगी तो इसके छीटे सांसद को भी पड़ सकते हैं। इधर, शिकायत के बाद सांसद ने भी इस मामले में संज्ञान नहीं लिया। सांसद निधि में हुए भ्रष्टाचार मामले में सांसद का मौन रहना कई सवालों को जन्म देता है। इस मामले में जब सांसद से उस समय बात की गई, तो उनकी रुचि देखकर हमने मामले में पड़ताल की, तब सांसद निधि में हुए बंदरबाट का पूरा मामला सामने आ गया। दस्तावेजों के मुताबिक, ऐसे 61 निजी संस्थानों को करोड़ों रुपए दिया गया है, जिन्हें सांसद ने स्वयं अपने लेटरहेड में अनुशंसा की है। इतना ही नहीं, इसी लेटरहेड के सहारे निजी व्यक्तियों को क्रियान्वयन एजेंसी बनाकर उन्हें सीधा चेक थमा दिया गया है, जबकि सांसद निधि की गाइड-लाइन में सांसद के अनुमोदन के बाद पीडब्ल्यूडी या आरईएस को निर्माण एजेंसी बनाकर चेक उसके नाम से जारी किए जाने का प्रावधान है। निजी व्यक्तियों को सीधा चेक थमा देना नियम विरूद्ध है।
इकरारनामा बगैर हुआ भुगतान
सांसद द्वारा कोई कार्य स्वीकृत किया जाता है तो उस संस्था और शासन के बीच 100 रुपए के स्टाम्प पेपर में इकरारनामा राज्यपाल की ओर से होता है, ताकि किसी तरह की गड़बड़ी होने पर शासन जारी राशि को 18 प्रतिशत ब्याज दर के साथ वसूली कर सके, लेकिन यहां शासन की ओर से बगैर इकरारनामा किए सीधा भुगतान कर दिया गया है। यदि इस मामले में निष्पक्ष जांच होती है तो क्या हश्र होगा समझा जा सकता है। अब तक जांच आगे नहीं बढऩे का प्रमुख कारण इसे ही माना जा रहा है। हालांकि सांसद निधि का यह एक मामला है। ऐसे कई मामले है, जिसका खुलासा होना अभी बाकी है।
सांसद ने खुद की थी शिकायत
आरटीआई से प्राप्त दस्तावेजों के मुताबिक कुछ लोगों ने सबसे पहले 762 पन्नों की शिकायत सांसद पाटले से 28 अगस्त 2017 को किया था। इस पर गंभीरता दिखाते हुए पखवाड़ेभर बाद सांसद पाटले ने खुद 15 सितंबर 2017 को मामले की जांच कराने कलेक्टर को ज्ञापन सौंपा था। इस पर तत्कालीन कलेक्टर ने जांच समिति तो बनाई, लेकिन कार्रवाई नहीं हुई। इस पर सांसद ने भी गंभीरता दिखाते हुए मामले में जांच कराने रुचि नहीं ली। मसलन, चार माह बाद कुछ अन्य लोगों ने 30 जनवरी 2018 को कलेक्टर से इसी मामले को लेकर फिर से शिकायत की, फिर भी मामले की जांच शुरू ही नहीं हुई है।
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