राजेंद्र राठौड़@जांजगीर-चांपा. वर्षों तक बहुजन समाज पार्टी के कब्जे में रही अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित पामगढ़ विधानसभा सीट से भाजपा के अंबेश जांगड़े वर्ष 2013 में भले ही चुनाव जीतकर संसदीय सचिव की कुर्सी पर आसीन हो गए हैं, लेकिन चार साल के कार्यकाल की बात करें तो क्षेत्रवासियों के दिल में जगह बनाने वे सफल नहीं हुए हैं। पिछले कुछ समय से बसपा की सक्रियता भी इस क्षेत्र में बहुत कम दिख रही है। ऐसे में खोई हुई सीट को दोबारा हासिल करने कांग्रेस बेताब है और ऐड़ी-चोंटी का जोर भी लगा रही है। वहीं पिछले चुनाव तक इस सीट पर त्रिकोणीय संघर्ष होता रहा है, लेकिन पिछले कुछ महीनों से जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जे) की सक्रियता ने क्षेत्र की राजनीति में अत्यधिक गरमाहट ला दी है।
जिले का एकमात्र पामगढ़ विधानसभा सीट वर्ष 2008 से अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित है। इस वजह से सभी राजनैतिक दलों की निगाहें इस सीट पर टिकी हुई है। भाजपा ने वर्ष 2013 में हुए विधानसभा चुनाव में पहली मर्तबा इस सीट पर कमल खिलाकर मिथक तोड़ा है। इस चुनाव में भाजपा के प्रत्याशी रहे अंबेश जांगड़े ने आठ हजार 125 मतों से बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवार दूजराम बौद्ध को पटखनी दी थी। चूंकि इस सीट से पहली बार भाजपा का उम्मीदवार चुनाव जीतकर छत्तीसगढ़ विधानसभा पहुंचा, इसलिए पार्टी ने उसे सिर-आंखों पर बिठाया। वर्तमान में विधायक जांगड़े को डॉ. रमन सिंह नेतृत्व वाली सरकार ने संसदीय सचिव की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी है, लेकिन वे क्षेत्रवासियों के दिलों में अब तक कोई खास जगह नहीं बना सके हैं। इसका प्रमुख कारण क्षेत्र में अपेक्षित विकास नहीं होना माना जा सकता है। राजनीति के जानकारों की मानें तो वर्ष 2008 में विधानसभा चुनाव हारने वाले अंबेश जांगड़े को मतदाताओं ने दोबारा इसलिए अवसर दिया, ताकि वे क्षेत्र में विकास की गंगा बहा सकें, लेकिन ऐसा कुछ करने में विधायक जांगड़े अब तक सफल नहीं हुए हैं। क्षेत्र में बुनियादी समस्याएं आज भी मुंह-बाहें खड़ी है, जिससे क्षेत्रवासियों में गहरी नाराजगी है। ठीक इसी तरह की स्थिति बहुजन समाज पार्टी की भी है। वर्ष 2008 में विधानसभा चुनाव हारने के बाद बसपा के उम्मीदवार रहे दूजराम बौद्ध पिक्चर से लगभग गायब हो गए हैं। बताया जाता है कि वे विशेष अवसरों पर ही लोगों के सामने आते हैं। इस वजह से पामगढ़ क्षेत्र में हाथी की चाल भी सुस्त पड़ गई है। इन दोनों दलों के कर्ता-धर्ताओं की निष्क्रियता का फायदा उठाने कांग्रेस और नवगठित जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जे) बेताब नजर आ रही है। मसलन, दोनों दलों के पदाधिकारी एवं आगामी विधानसभा चुनाव के लिए टिकट के दावेदार पामगढ़ क्षेत्र में लगातार दौराकर विभिन्न कार्यक्रमों में अपनी भागीदारी सुनिश्चित कर रहे हैं। इसका फायदा इन दोनों दलों को मिलता भी दिखाई पड़ रहा है। चूंकि मौजूदा विधायक अंबेश जांगड़े की कार्यशैली से नाराज आमजनता इस बार बदलाव के मूड में है। ऐसे में आगामी दिनों में इस क्षेत्र की राजनीति में अमूलचूल परिवर्तन होगा, यह कोई आश्चर्यजनक बात नहीं होगी।
दर्जनों मुद्दे, जो बनेंगे बदलाव के कारण
वर्ष 2013 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के अंबेश जांगड़े जब विधायक निर्वाचित हुए, वह दिन भाजपा के लिए ऐतिहासिक दिन था। क्योंकि पामगढ़ सीट पर कमल पहली बार खिला था। इस जीत की खुशी को भाजपा ने कई दिनों तक जोरशोर से मनाया तथा क्षेत्रवासियों को भरोसा भी दिलाया कि अब पामगढ़ क्षेत्र में विकास की गंगा बहेगी। जनता भी इस बात से खुश थी और उन्हें लग रहा था कि कांग्रेस व बसपा के कामकाज को तो देख लिया, अब भाजपा ही विकास का द्योतक बनेगी। मगर विकास का इंतजार करते चार साल गुजर गए और लोगों की आंखे तक पथरा गई, किन्तु पामगढ़ क्षेत्र में विकास गुम है। यही वजह है कि इस क्षेत्र के सरकारी स्कूल, अस्पताल, आंगनबाड़ी केन्द्र और अन्य जनसुविधा केन्द्र पहले की अपेक्षा और बदहाल हो गए हैं। सरकारी दफ्तरों में अफसरों की मनमानी चरम पर है, जिस पर नकेल कसने विधायक जांगड़े पूरी तरह से असफल साबित हुए हैं। ऐसे दर्जनों मुद्दे हैं, जो बदलाव का कारण बन सकते हैं।
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