जांजगीर-चांपा. स्वयंसिद्घ मुहूर्त कही जाने वाली अक्षय तृतीया (आखा तीज) अनेक वर्षों बाद अमृतसिद्घि योग के महासंयोग में आ रही है। इस योग में स्नान, दान तथा मांगालिक कार्यों का फल कई गुना अधिक शुभ माना गया है।
पंडितों के अनुसार, ग्रहगोचर की दृष्टि से देखें तो इस बार अक्षय तृतीया (आखा तीज) पर नक्षत्र मंडल में रोहिणी का प्रभाव 84 फीसदी रहेगा। वर्षाकाल में इसका प्रभाव आमजन की दृष्टि से हितकारी रहेगा। 29 अप्रैल 2017 को शनिवार के दिन रोहिणी नक्षत्र की साक्षी में अक्षय तृतीया मनाई जाएगी। शनिवार के दिन रोहिणी नक्षत्र का होना अमृतसिद्घि योग बना रहा है। यह योग सुबह 5.51 से 10.56 बजे तक रहेगा। सूर्य के उदयकाल से करीब 5 घंटे तक दिव्य योग की साक्षी का शुभ प्रभाव दिन भर रहेगा। इस योग में शुभ तथा मांगलिक कार्य करना श्रेष्ठ रहेगा।
पंडितों ने बताया कि वैशाख मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को अक्षय तृतीया (आखा तीज) कहते हैं। इस दिन जो भी शुभ कार्य किए जाते हैं, उनका अक्षय फल मिलता है। इसी कारण इसे अक्षय तृतीया कहा जाता है। वैसे तो सभी बारह महीनों की शुक्ल पक्षीय तृतीया शुभ होती है, किंतु वैशाख माह की तिथि स्वयंसिद्ध मुहूर्तो में मानी गई है, जो कभी क्षय नहीं होती उसे अक्षय कहते हैं। पंडितों ने बताया कि भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि अक्षय तृतीया की यह तिथि परम पुण्यमय है। भविष्य पुराण में लिखा है कि इस दिन से ही सतयुग और त्रेता युग का प्रारंभ हुआ था। भगवान विष्णु ने नरनारायण, हयग्रीव और परशुराम का अवतरण भी इसी तिथि को हुआ था। माना जाता है कि ब्रह्माजी के पुत्र अक्षय कुमार का आविर्भाव इसी दिन हुआ था।
अक्षय तृतीया का विशेष महत्व
पंडितों के अनुसार, अक्षय तृतीया (आखा तीज) को सर्वसिद्ध मुहूर्त के रूप में भी विशेष महत्व है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन बिना कोई पंचांग देखे कोई भी शुभ व मांगलिक कार्य जैसे विवाह, गृहप्रवेश, वस्त्र-आभूषणों की खरीददारी या घर, भूखंड, वाहन आदि की खरीददारी से संबंधित कार्य किए जा सकते हैं। नवीन वस्त्र, आभूषण आदि धारण करने और नई संस्था, समाज आदि की स्थापना या उदघाटन का कार्य श्रेष्ठ माना जाता है। अक्षय तृतीया के दिन ही भगवान परशुराम का अवतार हुआ था, जो आज भी अमर है इसलिए इसे चिरंजीवी तिथि भी कहते हैं। त्रेता युग का आरंभ भी इसी तिथि से माना गया है, इसलिए इसे युगादितिथि भी कहते हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें