राजेंद्र राठौर@जांजगीर-चांपा. सक्ती में अवस्थित जिन जमीनों को लेकर वर्तमान में घमासान मचा हुआ है, उन जमीनों पर कई लोगों अपना मालिकाना हक जता चुके हैं। कलेक्टर न्यायालय ने तत्कालीन अतिरिक्त कलेक्टर की जांच रिपोर्ट के आधार पर संबंधित भूमि पर अनाधिकृत कब्जा करने वाले सात लोगों को नोटिस भी जारी की थी। हालांकि जिला प्रशासन ने राजनीतिक दबाव के चलते संबंधितों के खिलाफ कार्यवाही करने के बजाय इस मामले को ही ठंडे बस्ते में डाल दिया, लेकिन उसी खसरा नंबर 1213 के मालिकाना हक को लेकर एक बार फिर जांच और कार्यवाही की मांग मुखर हुई है।
प्राप्त दस्तावेजों के अनुसार, सक्ती में अवस्थित खसरा नंबर 1213 रकबा 10.40 एकड़ भूमि शासकीय बड़े झाड़ के जंगल मद में दर्ज थी, जिसमें से अधिकांश भूमि तत्कालीन पटवारी कुंजबिहारी बैसवाड़े से मिलकर कुछ लोगों ने अपने नाम दर्ज करवा ली। इसकी शिकायत पूर्व में कलेक्टर न्यायालय में पहुंची थी, जिस पर कलेक्टर ने तत्कालीन अतिरिक्त कलेक्टर सुकुमार चांद को शिकायत की जांच कर रिपोर्ट प्रस्तुत करने की जिम्मेदारी सौंपी थी। तत्कालीन अतिरिक्त कलेक्टर ने जांच में पाया कि शासकीय बड़े झाड़ के जंगल की भूमि खसरा नंबर 1213 रकबा 10.40 को हल्का पटवारी ने अलग-अलग वर्षों के खसरा में निजी व्यक्तियों के नाम पर अंकित कर दिया। जांच रिपोर्ट से इस बात का भी खुलास हुआ था कि खसरा नंबर 1213/1 रकबा 1.43 एकड़ भूमि खसरा वर्ष 2003-04 में बड़े झाड़ के जंगल के रूप में खसरे में प्रविष्ट है। वहीं खसरा नंबर 1223/2 रकबा 0.27 एकड़ इसी वर्ष के खसरे में आबादी (मरघट) में प्रविष्ट है, जबकि खसरा नंबर 1213/4 रकबा 0.70 एकड़ भूमि खसरा वर्ष 1983-84 में हरिशंकर पिता मोहन सिंह के नाम पर प्रविष्ट है।
इसी प्रकार खसरा नंबर 1213/4 रकबा 0.70 एकड़ भूमि खसरा वर्ष 1998-99 में राजेन्द्र कुमार फत्तेलाल अग्रवाल, खसरा नंबर 1213/4 रकबा 0.70 एकड़ वर्ष 1993-94 में ललिता पिता नामालूम, खसरा नंबर 1213/5 रकबा 0.20 एकड़ वर्ष 2003-04 में राजीव गांधी शिक्षा मिशन का भवन, खसरा नंबर 1213/6 रकबा 0.03 एकड़ वर्ष 2003-04 में उत्तमलाल वल्द जीवन, 1213/7 रकबा 0.03 एकड़ वर्ष 2003-04 में रास्ता, 1213/8 रकबा 0.35 एकड़ वर्ष 2003-04 में श्रीचंद पिता साधुराम, खसरा नंबर 1213/9 रकबा 0.03 एकड़ वर्ष 2003-04 में कांति पति गोकुल तथा खसरा नंबर 1213/10 रकबा 0.05 एकड़ खसरा वर्ष 2003-04 में पांचो पति बेनी के नाम पर प्रविष्ट है। जांच अधिकारी ने कलेक्टर न्यायालय को यह भी प्रतिवेदित किया था कि उनके द्वारा संबंधितों को सूचना जारी करने पर उत्तमलाल, श्रीचंद, कांति एवं पांचो उपस्थित हुए और अपने कथन में स्वीकार किया कि उन्हें तत्कालीन पटवारी कुंजबिहारी बैसवाड़े ने पैसे लेकर किसान पुस्तिका प्रदान किया है। अतिरिक्त कलेक्टर ने अपने जांच प्रतिवेदन में कहा था कि तत्कालीन हल्का पटवारी कुंजबिहारी बैसवाड़े ने विधि विरूद्ध एवं अवैध रूप से शासकीय भूमि को संबंधितों के नाम दर्ज किया है। तत्कालीन अतिरिक्त कलेक्टर के जांच प्रतिवेदन के आधार पर कलेक्टर न्यायालय ने मामले में 20 जुलाई 2012 को सक्ती निवासी हरिशंकर पिता मोहनलाल, राजेन्द्र कुमार पिता फत्तेलाल अग्रवाल, ललिता पिता नामालूम, उत्तमलाल वल्द जीवन, श्रीचंद पिता साधुराम, कांति पति गोकुल तथा पांचो पति बेनी को कारण बताओ नोटिस जारी किया था, जिसमें कहा गया था संबंधित कारण बतावें कि क्यों न उसके नाम से दर्ज उपरोक्त शासकीय भूमि को छत्तीसगढ़ भू-राजस्व संहित 1959 की धारा 50 के तहत स्वप्रेरणा से पुनरीक्षण में लेते हुए पूर्ववत शासन के नाम पर दर्ज किया जाए। कलेक्टर न्यायालय ने इस संबंध में संबंधितों से 28 अगस्त 2012 को स्वत: अथवा अभिभाषक के माध्यम से जवाब मांगा था।
नोटिस में इस बात का भी जिक्र था कि संबंधित पक्ष यदि बचाव में कोई साक्ष्य देना चाहते हैं तो उसका भी उल्लेख करें। निर्धारित समय के भीतर जवाब प्राप्त नहीं होने पर प्राप्त जांच रिपोर्ट के आधार पर प्रकरण में एकतरफा आदेश पारित किया जाएगा। खास बात यह है कि इस नोटिस के बाद मामले में आगे क्या कार्यवाही हुई, फिलहाल यह स्पष्ट नहीं है। बताया जा रहा है कि राजनीतिक दबाव के कारण जिला प्रशासन ने इस मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया। हालांकि यह मामला जब-जब तूल पकड़ा है, तब-तब प्रशासनिक अधिकारियों ने संबंधित भूमि का सीमांकन कराकर वस्तुस्थिति जानने के बाद उचित कार्यवाही करने का झुनझुना जरूर थमाया है, लेकिन सीमांकन के बाद आगे की प्रक्रिया थम गई है। आपको बात दें कि पिछले कई वर्षों से सुलग रहे जमीन संबंधी इस मामले को एक बार फिर हवा मिल गई है। मुक्तिधाम संरक्षण समिति इस मामले में संलिप्त लोगों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही को लेकर जिस तरह से उग्र रवैया अपना रही है, उससे जाहिर है कि प्रशासन अबकी बार यदि इस मामले में कड़ा रूख नहीं अपनाता है तो स्थिति नियंत्रण से बाहर होने की पूर्ण संभावना है।
ईश्तहार के औचित्य को लेकर उठे सवाल
डेढ़ वर्ष पहले सक्ती के तत्कालीन तहसीलदार ने खसरा नंबर 1213 तथा अन्य भूमि पर थोक एवं सब्जी मार्केट, टैक्सी एवं आटो निर्माण, कांजी हाउस निर्माण, अटल आवास निर्माण, मंगल भवन निर्माण, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन निर्माण, गार्डन निर्माण, सांस्कृतिक भवन निर्माण तथा स्वीमिंग पुल निर्माण को लेकर ईश्तहार निकाला था, जिस पर आमलोगों से दावा-आपत्ति भी मांगी गई थी। ईश्तहार में कहा गया था कि उपरोक्त भूमियों को नगरपालिका परिषद सक्ती को हस्तांतरण किया जाना है। खास बात यह है कि तत्कालीन तहसीलदार ने ईश्तहार में उपरोक्त भूमियों को शासकीय मद में दर्ज होना बताया था, जबकि उपरोक्त भूमियों के मालिकाना हक को लेकर पिछले कई वर्षों से मार-काट की नौबत है। ऐसे में तत्कालीन तहसीलदार द्वारा प्रकाशित ईश्तहार के औचित्य को लेकर भी कई लोगों ने सवाल उठाए हैं।
जनप्रतिनिधियों ने भी किया अवैध कब्जा
सक्ती में अवस्थित जिन भूमियों के आधिपत्य को लेकर वर्तमान में हायतौबा मची हुई है, उसमें रसूखदारों के साथ ही कई जनप्रतिनिधियों ने भी अवैध कब्जा कर रखा है। उपलब्ध दस्तावेजों के अनुसार, खसरा नंबर 1213 की भूमि पर संबंधित जनप्रतिनिधियों ने अवैध कब्जा कर राजस्व रिकार्ड में अपना नाम चढ़वाया है, लेकिन उनके पास रजिस्ट्री संबंधी कोई कागजात उपलब्ध नहीं हैं। एक जनप्रतिनिधि ने 0.44 एकड़ भूमि को अपने नाम पर दर्ज करवाया है। वहीं सत्ता पक्ष के एक जनप्रतिनिधि ने 0.05 एकड़ भूमि को अपने नाम चढ़वाया है। राजनीति से जुड़े ये तो वे लोग हैं, जिनके दस्तावेज सार्वजनिक हुए हैं, लेकिन ऐसे-ऐसे दर्जनों लोग होंगे, जो शासकीय भूमि पर कुंडली मारकर बैठे हुए हैं। ऐसे लोगों के गिरेबान तक हाथ डालने की हिमाकत जिला प्रशासन जानबूझकर नहीं कर रहा है, जिसके कारण सक्ती की शासकीय भूमि अतिक्रमणमुक्त नहीं हो पा रही है।
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