जांजगीर.
कलेक्टोरेट चौक के समीप नवनिर्मित सरस्वती विला में संगीतमय श्रीमद् भागवत
कथा ज्ञान यज्ञ का आयोजन जारी है। चौथे दिन कथा वाचक पं. प्रियांश तिवारी
ने भरत चरित्र, अजामिल उपख्यान और समुद्र मंथन की कथा सविस्तार कही। इस
दौरान भक्त प्रहलाद और होलिका की जीवंत झांकी निकाली गई, जिसे देखकर कथा
सुनने पहुंचे लोग भाव-विभोर हुए।
संगीतमय श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ
के चौथे दिन भगवताचार्य पं. प्रियांश तिवारी ने भरत चरित्र का वर्णन करते
हुए कहा कि राजा दशरथ की चार संतानें थी, जिनमें से एक भरत थे। राजा दशरथ
अपने बड़े पुत्र श्रीराम को अपना राजपाठ सौंपना चाहते थे, लेकिन उनकी
धर्मपत्नी कैकई को यह मंजूर नहीं था, जिसके कारण राजतिलक के दिन ही राजा
दशरथ को अपने बड़े पुत्र श्रीराम को 14 वर्ष का बनवास भेजना पड़ा। राजा
दशरथ की मृत्यु के बाद राजपाठ सौंपने की जब बात हुई, तब भरत ने राज सिंहासन
संभालने से इंकार कर दिया। भगवान श्रीराम के वनवास से लौटते तक भरत ने राज
सिंहासन पर भगवान श्रीराम की चरण पादुका सजाए रखी। भगवताचार्य ने कहा कि
उस युग में भाई-भाई के बीच अथाह प्रेम हुआ करता था, लेकिन कलयुग में भाई ही
भाई का दुश्मन बन रहा है। उन्होंने कहा कि हमें भगवान श्रीराम, लक्ष्मण,
भरत और शत्रुहन के जीवन से सीख लेने की आवश्यकता है। माता-पिता, भाई-बहन और
अपने ही विपदा के समय में काम आते हैं। उन्होंने कहा कि वैसे तो रामायण और
रामचरित मानस जीवन का आधार है, लेकिन आज के परिवेश में लोग धर्म-कर्म और
रिश्ते-नातों से दूर होते जा रहे हैं। यही हमारे दुखों का कारण बनते जा रहा
है। उन्होंने आगे कहा कि अजामिल की कथा हर किसी को सुननी चाहिए। अजामिल की
कथा में जीवन का सार छिपा हुआ है। समुद्र मंथन की कथा कहते हुए आचार्य ने
कहा कि समुद्र मंथन से निकले विष को पीकर भगवान शिव त्रिकालदर्शी कहलाते
हैं। राक्षसों का वध करने के लिए उन्होंने समुद्र मंथन से निकले अमृत को
देवगणों की ओर दिया, जिसके कारण असुर शक्तियां समाप्त हुई। इस कथा का सार
यह है कि हमें जीवन में सार बातों को ग्रहण करना चाहिए तथा फिजूल बातों पर
बिल्कुल ध्यान नहीं देना चाहिए। मनुष्य का जन्म कई योनियों के बाद मिलता
है। इसलिए जीवन में सत्कर्म करना चाहिए, उसी से मान-सम्मान में वृद्धि होती
है।
भक्त प्रहलाद की झांकी देख विभोर हुए लोग
चौथे दिन आचार्य ने भक्त प्रहलाद उनके पिता हिरण्य कश्यप और होलिका की
कथा भी कही। उन्होंने कहा कि भक्त प्रहलाद बुराई पर अच्छाई की जीत का बड़ा
प्रमाण है। हिरण्य कश्यप और उसकी बहन होलिका में राक्षसी प्रवृत्ति थी,
जिसके कारण उन्हें भयानक मृत्यु नसीब हुई। भगवान नारायण ने अलग-अलग रूप
लेकर इन दोनों का अंत किया। इस दौरान भक्त प्रहलाद के रूप में आठ वर्षीय
बालक कान्हा तथा होलिका के रूप में एक युवती को सजाकर कथा स्थल पर लाया
गया, जिसे देखकर वहां उपस्थित जन भाव-विभोर हो गए। कथा के पांचवे दिन
आचार्य ने वामन अवतार, राम चरित्र और कृष्ण अवतार का सविस्तार वर्णन किया।
कथा के दौरान उनके सहयोगी बीच-बीच में संगीत की धुन पर भजनों की प्रस्तुति
देते रहे। कथा सुनने के लिए रोजाना बड़ी संख्या में श्रद्धालुजन पहुंच रहे
हैं। वहीं कथा को सफल बनाने धरमसिंह राठौर, जीवन सिंह राठौर, अजीत सिंह
राठौर, रंजीत सिंह राठौर, गर्व सिंह राठौर सहित अन्य लोग जुटे हुए हैं।
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