राजेन्द्र राठौर@जांजगीर-चांपा. खाद्य विभाग में भ्रष्टाचार थमने का नाम ही नहीं ले रहा है। विभाग के अधिकारी विभिन्न योजनाओं में जहां गड़बड़ी कर शासन को चूना लगा रहे हैं। वहीं अब चावल परिवहन के नाम पर विभागीय अधिकारियों ने 40 लाख रुपए का वारा-न्यारा किया है। ‘दैनिक नवीन कदम’ को जो जानकारी मिली है उसके मुताबिक, खाद्य विभाग के अफसरों ने राइस मिलरों से सांठगांठ कर कागजों में ही डभरा के चावल को अकलतरा और अकलतरा के चावल को डभरा परिवहन कर लाखों का परिवहन भाड़ा हजम किया है। इसकी शिकायत कुछ लोगों ने कलेक्टर सहित अन्य प्रशासनिक अफसरों से की है, लेकिन अभी तक कोई कार्यवाही नहीं हुई है।
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उल्लेखनीय है कि खाद्य वितरण व्यवस्था को सुदृढ़ बनाने के लिए शासन आए दिन नई-नई नीतियां लागू कर रहा है, ताकि खाद्य सामग्री की अफरा-तफरी पर लगाम लग सके, लेकिन जिले में पदस्थ खाद्य अधिकारी इतने घाघ हैं कि वे शासन की हरेक नीति को आसानी से फेल कर दे रहे हैं। ताजा मामला चावल परिवहन से संबंधित है। ‘दैनिक नवीन कदम’ को मिली जानकारी के मुताबिक, खाद्य विभाग के अफसरों ने डभरा क्षेत्र के राइस मिलों के चावल को ट्रक एवं अन्य वाहनों से अकलतरा तथा अकलतरा क्षेत्र के मिलों के चावल को डभरा क्षेत्र के गोदामों तक पहुंचवाया है, लेकिन असल में एक क्षेत्र का चावल दूसरे क्षेत्र पहुंचा ही नहीं है। विभागीय अफसरों ने कागजी खानापूर्ति कर परिवहन भाड़ा के रूप में करीब 40 लाख रुपए का गोलमाल किया है। बताया जा रहा है कि चावल के परिवहन के लिए ट्रक नंबर, परिवहन पर्ची सहित अन्य आवश्यक कागजात तो तैयार किए गए हैं, लेकिन वे कागजात केवल रिकार्ड में संलग्र करने के लिए हैं। असल में एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में चावल का परिवहन ही नहीं किया गया है। इस संबंध में जब डभरा क्षेत्र के कुछ राइस मिलरों से बात की गई तो उनका कहना था कि खाद्य विभाग के अफसरों ने डभरा क्षेत्र से अकलतरा क्षेत्र में चावल परिवहन के लिए पर्ची तो काटी, लेकिन बाद में चावल को परिवहन करवाने के बजाय वहीं के वहीं रखवा दिया। मिलरों का कहना है कि जब उन्होंने विभाग के अधिकारियों से बारीकी से पूछताछ की तो उन्होंने अपना मुंह बंद रखने में ही सलामती होने की बात कही। खास बात यह है कि इस गड़बड़झाले में खाद्य विभाग के अफसर ही नहीं, कुछ राइस मिलर भी मिले हुए हैं, जिनको बकायदा हिस्सेदारी भी मिली है। बहरहाल, खाद्य विभाग में गड़बड़ी का यह पहला मामला नहीं है। ऐसे दर्जनों मामले अब तक सामने आ चुके हैं, जिनकी शिकायत के बाद फाइलें कलेक्टोरेट या फिर शासन स्तर पर धूल खाती हुई पड़ी है।
कागजों में सबकुछ ओके
बताया जा रहा है कि खाद्य विभाग के अफसरों ने कुछ राइस मिलरों से मिलकर इस गड़बड़ी को बड़े शातिराना अंदाज में अंजाम दिया है। अधिकारियों ने चावल परिवहन के लिए बकायदा पर्ची काटी है, लेकिन चावल को वाहनों से परिवहन करवाने के बजाय वहीं के वहीं रखवा दिया गया है। सिर्फ इतना ही नहीं, डभरा क्षेत्र से जितनी मात्रा में चावल परिवहन की पर्ची काटी गई है, उतनी मात्रा ही अकलतरा क्षेत्र में पहले से ही बोरियों में सुरक्षित रखवा ली गई थी। ठीक इसी तरह का खेल अकलतरा क्षेत्र से डभरा क्षेत्र में चावल परिवहन में भी किया गया है। कुल मिलाकर माजरा यह है कि अलग-अलग क्षेत्रों से चावल का परिवहन हुआ ही नहीं है और परिवहन के नाम पर करीब 40 लाख रुपए का वारा-न्यारा कर दिया गया है।
लंबी दूरी परिवहन क्यों
नियम-कायदों पर गौर करें तो राइस मिलरों के चावल को संबंधित क्षेत्र के गोदामों में ही रखवाने का प्रावधान है, लेकिन जिले में शासन के नियम-कायदों की खुलेआम धज्जियां उड़ाई जा रही है। इस मामले में भी कुछ ऐसा ही हुआ है। आपको बता दें कि डभरा से अकलतरा की दूरी करीब डेढ़ सौ किलोमीटर है। इतनी लंबी दूरी तय कर चावल परिवहन कराए जाने का आखिर औचित्य ही क्या है? जबकि नियम यह कहता है कि समर्थन मूल्य के तहत खरीदे गए धान अथवा कस्टम मिलिंग के चावल को आसपास के गोदामों में ही पहुंचवाना है, लेकिन इस मामले में भ्रष्टाचार की सारी हदें पार कर दी गई है। हालांकि इस पूरे मामले की शिकायत कुछ राइस मिलरों ने की है, लेकिन उच्चाधिकारियों ने अब तक उनकी शिकायत पर अपनी नजरें इनायत नहीं की है।
लूट सको लूटलो कि नीति है
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