शिक्षाकर्मियों ने किया मूल्यांकन कार्य का बहिष्कार, नियमित वेतन और एरियर्स की राशि नहीं मिलने से आक्रोश
जांजगीर-चांपा. नियमित वेतन भुगतान नहीं होने के साथ ही एरियर्स की राशि लंबित होने से आक्रोशित शिक्षाकर्मियों ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। शिक्षाकर्मियों ने रविवार को दसवीं-बारहवीं बोर्ड कक्षाओं के मूल्यांकन कार्य का बहिष्कार करते हुए जिला मुख्यालय जांजगीर स्थित मूल्यांकन केन्द्र के बाहर जोरदार प्रदर्शन किया। इस दौरान विभिन्न संघों से जुड़े शिक्षाकर्मी मौजूद रहे। सभी ने एक स्वर में कहा कि जब तक उनकी मांगें पूरी नहीं हो जाती, तब तक वे मूल्यांकन कार्य नहीं करेंगे।उल्लेखनीय है कि जिला मुख्यालय जांजगीर स्थित शासकीय बहुउद्देशीय उच्चतर माध्यमिक शाला में इन दिनों छत्तीसगढ़ माध्यमिक शिक्षा मंडल द्वारा आयोजित दसवीं और बारहवीं बोर्ड परीक्षाओं की उत्तरपुस्तिकाओं का मूल्यांकन कार्य चल रहा है। माशिमं द्वारा इस काम में नियमित शिक्षक सहित करीब साढ़े चार सौ शिक्षाकर्मी लगाए गए हैं। रोजाना की तरह रविवार को भी सभी शिक्षाकर्मी निर्धारित समय पर मूल्यांकन केन्द्र पहुंचे थे। मूल्यांकन केन्द्र प्रभारी ने जैसे ही उन्हें मूल्यांकन कार्य प्रारंभ करने के लिए कहा तो वे केन्द्र के बाहर निकल आए और अपनी विभिन्न मांगों को लेकर शासन-प्रशासन के खिलाफ नारेबाजी करने लगे। हाथों में मूल्यांकन कार्य बहिष्कार की तख्ती थामे शिक्षाकर्मियों ने एक स्वर में कहा कि सरकार की कथनी और करनी में जमीन-आसमान का अंतर है। सरकार ने शिक्षाकर्मियों को हर माह की पांच तरीख तक वेतन भुगतान करने का आश्वासन दिया था, जो हवा-हवाई साबित हुआ है। जिले के कई विकासखंड क्षेत्र के स्कूलों में कार्यरत शिक्षाकर्मियों को तीन से चार माह का वेतन नहीं मिला है, जिससे उनके और उनके परिवार के समक्ष भूखों मरने की नौबत आन खड़ी हुई है। शिक्षाकर्मियों ने कहा कि नियमित रूप से वेतन नहीं मिलने से उनकी आर्थिक स्थिति खराब है। व्यापारियों ने उधार में रोजमर्रा के सामान देने बंद कर दिए हैं। परिजन यदि बीमार पड़ जाए तो उनके उपचार के लिए रुपए नहीं है। इसके अलावा लंबित एरियर्स की राशि का भुगतान भी नहीं हुआ है। शिक्षाकर्मियों ने एक स्वर में कहा कि शासन-प्रशासन यदि उनकी मांगों को तत्काल पूरा नहीं करता है तो वे बोर्ड कक्षाओं की उत्तरपुस्तिकाओं को हाथ भी नहीं लगाएंगे। इस दौरान शिक्षाकर्मियों ने अपनी मांगों के संबंध में स्कूल शिक्षा विभाग के सचिव के नाम मूल्यांकन केन्द्र प्रभारी को हस्ताक्षरयुक्त ज्ञापन भी सौंपा। इधर, मूल्यांकन कार्य में लगे शिक्षाकर्मियों के एक साथ लामबंद होने की खबर से प्रशासन में हडक़ंप मच गया। बताया जा रहा है कि इसकी सूचना मिलते ही शिक्षा विभाग के अधिकारी मूल्यांकन केन्द्र पहुंचे और शासन-प्रशासन को शिक्षाकर्मियों की मांगों से अवगत कराकर शीघ्र उचित पहल करने का आश्वासन दिया। बहरहाल, प्रथम चरण का मूल्यांकन कार्य पूर्ण होने के बाद अब द्वितीय चरण का मूल्यांकन कार्य चल रहा है। उत्तरपुस्तिकाओं का मूल्यांकन कार्य अब अंतिम दौर में है, जिसे देखते हुए मूल्यांकन कार्य में लगे सैकड़ों शिक्षाकर्मियों ने राज्य सरकार तक अपनी मांगे पहुंचाने मोर्चा खोला है।
हर साल करते हैं बहिष्कार
नियमित वेतन सहित अन्य मागों को लेकर शिक्षाकर्मी संघ द्वारा हर वर्ष बोर्ड कक्षाओं की उत्तरपुस्तिका के मूल्यांकन कार्य का बहिष्कार किया जाता है। मूल्यांकन बहिष्कार का यह सिलसिला पिछले तीन-चार वर्षों से जारी है। दिलचस्प बात यह है कि संघ के पदाधिकारी मांगे पूरी नहीं होने तक मूल्यांकन कार्य का बहिष्कार करने की बात कहते हैं, लेकिन प्रशासनिक अफसरों की समझाइश के बाद वे काम पर लौट जाते हैं। इस बात से शासन-प्रशासन भी वाकिफ है। नतीजतन, प्रशासनिक अधिकारी भी उन्हें आश्वासन देकर काम पर लौटा लाते हैं। कुल मिलाकर शिक्षाकर्मी संघों का ढुलमुल रवैया भी कई सवालों को खड़ा करता है।
संघों की कार्यशैली संदेहास्पद
वर्तमान में छत्तीसगढ़ प्रदेश में शिक्षाकर्मियों के कई संघ अस्तित्व में हैं। जिले में कार्यरत सभी शिक्षाकर्मी विभिन्न संघों से जुड़े हुए हैं। संघ के प्रदेश स्तर के पदाधिकारियों ने जिला स्तर पर बकायदा पदाधिकारियों की नियुक्ति भी की है। बताया जाता है कि शिक्षाकर्मियों के बीच अपनी पैठ बनाए रखने के लिए विभिन्न संघों के पदाधिकारी बीच-बीच में शासन-प्रशासन के खिलाफ आक्रामक तेवर दिखाते हैं, जबकि वही पदाधिकारी अन्य अवसरों पर प्रशासनिक अफसरों से सांठगांठ करके अपना उल्लू सीधा करते हैं। मजे की बात यह है कि विभिन्न संघों के पदाधिकारियों का काम केवल ज्ञापन सौंपने और अधिकारियों से सौजन्य मुलाकात करने तक सीमित रह गया है। वास्तव में जिन मकसदों को लेकर विभिन्न संघों का गठन किया गया है, वह मकसद पदाधिकारियों की चटुकारिता की वजह से पीछे छूट गया है।
अन्य मुद्दों पर साधी चुप्पी
शिक्षाकर्मियों के अधिकारों के लिए शासन-प्रशासन से लड़ाई लडऩे की दुहाई देने वाले विभिन्न संघों से जुड़े पदाधिकारी अन्य कई बड़े मुद्दों को लेकर चुप्पी साधे हुए हैं। जिला पंचायत द्वारा शिक्षाकर्मियों की पदोन्नति को लेकर जारी की गई सूची में लगातार चार बार संशोधन किया गया है। बताया जा रहा है कि पदोन्नति सूची में तकनीकी खामियों का हवाला देकर बार-बार ऐसा किया जा रहा है, जबकि वास्तव में पदोन्नति पाने वाले शिक्षाकर्मियों को मनमाफिक स्कूल में पदस्थ करने के लिए मोटी रकम लेकर यह खेल खेला जा रहा है। इस खेल में विभिन्न संघों के पदाधिकारी भी शामिल हैं, जो जिला और जनपद पंचायतों के अधिकारियों से सांठगांठ कर अपनी जेबें भर रहे हैं। यही वजह है कि जिला पंचायत सीईओ द्वारा पदोन्नति सूची में चार बार संशोधन किए जाने के बाद भी संघों के पदाधिकारी खामोश बैठे हुए हैं। सिर्फ इतना ही नहीं, ईपीएफ कटौती सहित अन्य ज्वंलत मुद्दों पर भी संघ के पदाधिकारी केवल राजनीतिक रोटियां सेंक रहे हैं।
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