शिवरीनारायण. चित्रोत्पल्ला गंगा के पावन त्रिवेणी तट पर सदियों से विराजित भगवान जगन्नाथजी के मूल स्थान शिवरीनारायण में रजुतिया का त्योहार बड़े ही श्रद्धा एवं भक्ति के साथ मनाया गया, जहां श्रद्धालु दूर-दूर से भगवान की एक झलक पाने के लिए पहुंचे।
धर्म एवं आध्यात्मक की पवित्र धरा धाम शिवरीनारायण में रथयात्रा का त्योहार हर्षोल्लास पूर्वक मनाया गया, इसे स्थानीय बोली में लोग रजुतिया के नाम से जानते है। शिवरीनारायण में रथयात्रा का इतिहास उतना ही प्राचीन कालिक है, जितना कि यह नगर। वस्तुत: यहां इसकी शुरूआत कब से हुआ है, यह बता पाना असंभव है। कारण कि शिवरीनारायण युग युगांतर की नगरी है। रथयात्रा के दिन जगन्नाथ मंदिर में सुबह से ही रथयात्रा की तैयारी शुरू हो चुकी थी। भक्त दर्शन कर भजन-कीर्तन में तल्लीन दिखे। दोपहर 3.30 बजे भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्राजी की प्रतिमा को रथ पर आरूढ़ कराया गया। रथ को फूलों से आकर्षक ढंग से सजाया गया था, जहां भगवान को रथ में आरूढ़ करने के बाद पूजा अर्चना की गई और फिर जयघोष के साथ रथ खींचना आरंभ हुआ। इस दौरान हजारों की तादात में महिला-पुरूषों की भीड़ भगवान की एक झलक पाने और प्रसाद चढ़ाने व पाने के लिए टूट पड़ रही थी। जनसमुदाय रथ को हाथों से सहारा देकर खींच रहे थे। रथ के सामने जिला बलौदाबाजार के ग्राम खपरीडीह से पहुंची कीर्तन मण्डली श्रीराम जयराम जय जय राम के धुन पर कीर्तन व नृत्य करते चले जा रहे थे। लोगों की भीड़ को देखते हुए पुलिस प्रशासन ने भी चाक-चौबंद व्यवस्था कर रखी थी।
रथयात्रा जैसे ही मठ मंदिर से प्रारंभ हुई, कीर्तन मण्डली के सदस्यों ने कीर्तन करते हुए पहले भगवान शिवरीनारायण बड़े मंदिर में परिक्रमा पूर्ण किया। यात्रा मठ मंदिर से सदर बाजार, पुरानी हटरी, हनुमान मंदिर, मेला ग्राउण्ड होते हुए जनकपुर पहुंची। पूरे रास्ते भर नगरवासियों ने एवं दूरदराज के गांव से आए श्रद्धालुओं ने पूजा अर्चना की। देर शाम भगवान को जनकपुर में पूजा-अर्चना के बाद विश्राम कराया गया। भगवान यहां दशमी तक विराजेंगे। दशमी को वे पुन: भक्तों को दर्शन देेते हुए जगदीश मंदिर पधारेंगे। यहां बताना लाजिमी होगा कि शिवरीनारायण भगवान जगन्नाथजी का मूल स्थान है। ऐसा बताया जाता है कि प्राचीनकाल में कलिंग प्रांत के शासक उत्कल नरेश भगवान भ्रमण करते हुए शिवरीनारायण पहुंचे, यहां उन्होंने जगन्नाथजी का दर्शन किया। वे इतने प्रभावित हुए कि भगवान को विनती कर अपने साथ उड़ीसा पुरी ले गए, जहां भगवान ने राजा को स्वप्न दिया कि मैं तुम्हारे भक्ति भाव से प्रसन्न होकर यहां आ गया हूं, लेकिन वर्ष में एक बार माघी पूर्णिमा के दिन अपने मूल स्थान में जाऊंगा और राजा मान गए, तबसे माघी पूर्णिमा को यहां विशाल मेला लगता है। इसलिए यहां रथयात्रा बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। रथयात्रा के अवसर पर नगरवासी सहित बड़ी तादात में पूरे जिले भर से श्रद्धालु उपस्थित रहे।

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