रविवार, 6 अगस्त 2017

बीडीएम अस्पताल में गरीबों के साथ ज्यादती, स्मार्ट व बीपीएल कार्ड के बावजूद नहीं मिलती दवा, दवा के लिए स्टाफ दिखाते है मेडिकल स्टोर्स का रास्ता

राजेन्द्र जायसवाल @ चांपा. अंचल के जननेता व पूर्व मंत्री स्वर्गीय बिसाहूदास महंत के नाम पर चांपा में संचालित शासकीय अस्पताल में गरीब मरीजों की सुनने वाला कोई नहीं है। स्मार्ट व बीपीएल कार्ड के बावजूद यहां गरीब मरीजों को दवा तक नहीं मिलती। अस्पताल स्टाफ गरीब मरीजों के परिजनों को मेडिकल स्टोर्स से दवा खरीदने मजबूर करते हैं।

चांपा में संचालित बीडीएम अस्पताल सबसे पुराना और बड़ा सरकारी अस्पताल है, जहां क्षेत्र के सैकड़ों मरीज उपचार कराने पहुंचते हैं। इस अस्पताल में मरीजों को जरूरी सुविधाएं उपलब्ध कराने शासन की ओर से हर माह लाखों रुपए पानी की तरह बहाया जा रहा है, लेकिन अस्पताल में पदस्थ चिकित्सक व कर्मचारियों की कमीशनखोरी के कारण गरीब मरीजों को किसी भी सुविधा का लाभ नहीं मिल पा रहा है। बीडीएम अस्पताल में खासकर गरीबी रेखा से नीचे जीवन-यापन करने वाले मरीजों की सुनने वाला कोई नहीं है। स्मार्ट व बीपीएल कार्ड होने के बावजूद उन्हें बाहर से दवाइयां खरीदनी पड़ती है। बताया जाता है कि यह सब कमीशन के खेल के चलते हो रहा है। अस्पताल में पदस्थ चिकित्सक व स्टाफ, मेडिकल स्टोर्स से बंधे हुए है, जो कमीशन के लिए सादे कागज पर लिखकर मरीजों से दवा मंगाते हैं। यहां मरीजों को आरएल बॉटल, निडिल, सिरिज, एंटीबायोटिक दवा, सर्दी-बुखार की दवा, एंटी स्नेक वेनम तक नहीं मिल पाता, जबकि इन दवाओं की पर्याप्त सप्लाई बीडीएम अस्पताल में हर माह होती है। दवा नहीं मिलने के संबंध में अस्पताल में पदस्थ चिकित्सक तर्क देते हैं कि कई बार मरीज गंभीर स्थिति में पहुंचता है, जिसके उपचार के लिए आवश्यक दवाएं अस्पताल में नहीं होती। 

ऐसी स्थिति में सादे कागज पर लिखकर मेडिकल स्टोर्स से दवाइयां मंगाई जाती है। चिकित्सकों के ये तर्क अपने स्तर पर सहीं हो सके है, लेकिन अस्पताल में भर्ती मरीजों की स्थिति देखने व उनकी बातें सुनने के बाद सच नहीं हो सकती। यहां पदस्थ चिकित्सकों ने स्व. बिसाहूदास महंत के उद्देश्यों को बट्टा लगाने में कोई कसर नहीं छोड़ा है। यह अस्पताल शासकीय है और यहां पहुंचने वाले गरीब मरीजों का उपचार नि:शुल्क किया जाना है, लेकिन यहां के डाक्टर, नर्स व वार्ड ब्वाय शासकीय अस्पताल की आड़ में खुलकर दुकानदारी कर रहे हैं। अस्पताल में कई चिकित्सक पदस्थ हैं, जिनकी ड्यूटी अलग-अलग पालियों में लगती है, लेकिन सभी चिकित्सक पूरे समय अपने प्राइवेट क्लीनिक में व्यस्त रहते हैं। अस्पताल में चिकित्सकों के नहीं पहुंचने की शिकायत कई बार हो चुकी है, लेकिन चिकित्सक अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहे हैं। मरीजों का आरोप है कि यहां प्रसव के लिए आने वाली ज्यादातर महिलाओं का आपरेशन किया जाता है, जिसके एवज में 10 से 15 हजार रुपए शुल्क लिए जाते हैं। 

बीडीएम अस्पताल में उपचार कराने पहुंचे एक मरीज ने बताया कि वह बीपीएल कार्डधारी है, इसके बावजूद उसे अस्पताल से कोई दवाएं नहीं मिल पाई। चिकित्सक ने जांच करने के बाद सादे कागज में दवा लिखकर उसे मेडिकल स्टोर्स का रास्ता दिखा दिया। अस्पताल में भर्ती एक मरीज के परिजनों ने बताया कि दवा नहीं मिलने की शिकायत करने पर चिकित्सक और स्टॉफ अभद्र व्यवहार करते हैं। स्टाफ द्वारा यह भी कहा जाता है कि यदि उन्हें बेहतर इलाज कराना है, तो प्राइवेट क्लीनिक में जाएं। बहरहाल बीडीएम अस्पताल में पहुंचने वाले अधिकांश मरीज व उनके परिजन इस तरह की समस्याओं से जूझ रहे हैं। यहां कमीशनखोरी का खेल प्रशासनिक अधिकारियों की आंखों के सामने वर्षो से बेखटके जारी है, बावजूद इसके दोषी चिकित्सकों व कर्मचारियों पर किसी तरह की कार्रवाई नहीं हो रही है।
 


दवा के लिए घुमाते हैं घंटों

गरीब मरीजों के बीपीएल व स्मार्ट कार्ड की जांच करने में कर्मचारी पहले तो कई घंटे लगाते है, उसके बाद दवा के लिए मरीज को घंटों घुमाया जाता है। उपचार के लिए डाक्टर द्वारा लिखी गई दवा अस्पताल में मौजूद नहीं होने पर स्मार्ट व बीपीएल कार्डधारियों को लोकल परचेस कर दी जाती है। इसके बाद स्टोर के कर्मचारी पर्ची लेकर अस्पताल से अनुबंधित मेडिकल स्टोर्स से दवाई खरीदकर मरीजों को देते है। इस प्रक्रिया में कई घंटे लग जाते है, तब तक मरीज की हालत बद्तर हो चुकी होती है। 

 

अच्छा खाना भी नसीब नहीं

मरीजों को दवा के साथ डाइट के अनुसार भोजन उपलब्ध कराने का राज्य सरकार दावा तो करती है, लेकिन बीडीएम अस्पताल में पिछले कई वर्षो से मरीजों को पनिहल दाल और भात परोसा जा रहा है। मरीजों को फल, बे्रड व दूध मिलना तो दूर, उसके तक दर्शन भी नहीं होते। अस्पताल में डाइट चार्ट का उल्लेख कहीं नहीं है, जिसके कारण मरीज घटिया भोजन खाने को मजबूर हैं। अस्पताल प्रबंधन की लापरवाही के कारण भोजन व्यवस्था इतनी बद्तर हो गई है कि यहां सुबह का भोजन मरीजों को दोपहर में मिलता है।

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