जांजगीर-चांपा. ‘मैं व्यासपीठ से वास्तविकता का ही निरूपण करूंगा, आपको सुख मिले या न मिले। मैं अपने आप को भाग्यशाली मानता हूं, क्योंकि मैंने अर्धशतक बनाया है। सेंचुरी बने न बने यह बल्ला मैंने घुमाया है। मैं बहुत पढ़ा-लिखा नहीं हूं, जो कुछ मिला है संतों और गुरूजन का ही आशीर्वाद है। अपनी पूरी झोली खाली करके जाउंगा। बाहर से देखने वाला तो यह देखता है बाबा एक थैला लटकाया है, लेकिन मुझसे पूछे उसमें कितने जेब है, जेब के अंदर भी जेब है। नौ दिन में खाली नहीं कर पाऊंगा। छत्तीस साल से भर रहा हूं, इसे खाली करने में भी छत्तीस साल लगेंगे।’
यह बातें सुग्रीव किला उत्तरप्रदेश से पधारे हुए विद्वान आचार्य अनंत श्री विभूषित विश्वेश प्रपन्नाचार्य महराज ने कही। वे शिवरीनारायण मठ महोत्सव में पधारे हुए संत-महात्माओं, श्रद्धालुओं एवं श्रोताओं को रामकथा का रसपान करा रहे थे। विदित हो कि शिवरीनारायण मठ महोत्सव अंतर्गत श्रीसीताराम विवाह महोत्सव का यह पचासवां वर्ष संपन्न होने जा रहा है। इस अवसर पर आचार्य ने कहा कि मैं अपने आपको भाग्यशाली मानता हूं, क्योंकि मैंने अर्धशतक बनाया है। सेंचुरी बने या न बने यहां बल्ला मैंने घुमाया है। यह संभव है कि हम उतने दिन जगत में रहेंगे या नहीं यह मेरी ही नहीं आप सब की भी बातें है। जब तक जगत में हो जीने का ढंग सीख लो यहां भगवान के अतिरिक्त कोई नहीं है। यह पूरी दुनिया मतलबी है, यहां कुछ नहीं अपना हर चीज बेगानी है। ये दुनिया तेरी वाह-वाह मतलब की दीवानी है, लेकिन याद रखना मुनि महात्मा और संत सब अलग-अलग है। वर्तमान भारतीय सामाजिक परिस्थिति पर अपना विचार प्रकट करते हुए उन्होंने कहा कि चंद लोग साधु नहीं हैं, लेकिन साधु कहलाते हैं। बाबा एक कामन शब्द बन गया है। यदि समाज में कोई एक गलत करता है तो संपूर्ण समाज को गलत नहीं ठहरा सकते।
भगवान शिव की कथा का रसपान कराते हुए उन्होंने कहा कि भगवान भोलेनाथ जल चढ़ाने से आपके यमलोक के क्लेश का हरण करते है। चावल चढ़ाने से चक्रवर्ती बना देते हैं। भांग धतूरा चढ़ाने से अपने पुरी में वास कराते हैं। बेल चढ़ाने से सदा साथ रख लेते हैं। उन्होंने लोगों को खूब ठहाके लगवाते हुए कहा कि शिवजी गाल बजाने से अति प्रसन्न हो जाते हैं। कारण कि वे जानते है कि ये मेरे ससुर की भाषा बोल रहे है। उन्होंने कहा देवताओं और संत भगवान से जीवन में कभी भी द्रोह नहीं करनी चाहिए। इससे उनका अपना कुछ नहीं बिगड़ेगा, उल्टा आपका ही नुकसान होगा। वे तो अपनी मस्ती में मस्त रहते हंै। उनकी चरणों में प्रार्थना करनी चाहिए। रघुनाथजी के विवाह प्रसंग पर उन्होंने कहा जबसे रामजी विवाह कर अयोध्या आए, तब से राजा दशरथ के घर खुशियों का ठिकाना नहीं था। एक साथ जिस महल में चार-चार बहुएं ब्याह कर आई। वहां के आनंद का वर्णन कैसे किया जा सकता है। दशरथ के महल में मेघ आते हंै, लेकिन बिना बरसे चले जाते हैं। वहां सुकृत पुण्य की बारिश हो रही है। पूरे अयोध्या में आनंद छाया हुआ है। एक दिन राजा दशरथजी ने दर्पण में अपना स्वरूप देख उनके कान के पास के कुछ केश श्वेत हो गए हंै, तभी उन्हें लगा था कि अब यह राज्य मुझे हस्तांतरित करना है। उन्होंने अपनी सारी बातें गुरूदेव वशिष्ठ को बताई।
गुरूदेव ने कहा कि हे राजन शीघ्र ही राम को युवराज बना दो। यह समाचार पूरे अयोध्या में केवल मंथरा को अच्छा नहीं लगा। उसने माता कैकेयी को रघुनाथजी के वन गमन के लिए प्रेरित किया। आचार्य ने कहा कि लोग माता कैकेयी को दोष देते है, लेकिन उन्हें वही लोग दोष देंगे, जिन्हें माता के वास्तविक चरित्र का ज्ञान नहीं। शिवरीनारायण मठ महोत्सव के षष्ठम दिवस भी लोगों की भारी भीड़ रामकथा का रसपान करने के लिए उपस्थित रही। सोमवार को कथा श्रवण करने अकलतरा विधायक चुन्नीलाल साहू, सनत राठौर, रायपुर दूधाधारी मठ के ट्रस्टी रामानुजलाल उपाध्याय, राजीव लोचन मंदिर राजीम से भक्त उपस्थित हुए। हर बार की तरह यजमान के रूप में राजेश्री डॉ. महंत रामसुंदर दास महराज विराजित थे।

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