जांजगीर-चांपा. दीप्ति बिल्डर्स एण्ड कॉलोनाइजर ने जिला मुख्यालय जांजगीर में आवासीय कॉलोनी विकसित करने में नियम-कायदों की जमकर धज्जियां उड़ाई है। इस कॉलोनाइजर ने एक भी जरूरी औपचारिकता पूरी नहीं की है। सिर्फ इतना ही नहीं, प्लॉटिंग करते समय इस कॉलोनाइजर ने गरीबों के लिए 15 फीसदी जमीन भी नहीं छोड़ी है, जबकि एक एकड़ से अधिक की प्लाटिंग कर खरीदी-बिक्री करने पर 15 फीसदी जमीन छोड़े जाने का प्रावधान है। कुल मिलाकर कहा जाए तो दीप्ति बिल्डर्स एण्ड कॉलोनाइजर के संचालक ने प्रशासनिक अफसरों से सांठगांठ कर अवैध कॉलोनी बसा दी है।
दरअसल, जिला मुख्यालय जांजगीर स्थित कलेक्टर बंगला के समीप टाऊन एण्ड कंट्री प्लानिंग के कायदे-कानून की किस कदर धज्जियां उड़ रही है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि शहर के सबसे पॉश एरिया में एक-दो नहीं, बल्कि दर्जनों अवैध मकान बन गए हैं। ये मकान दीप्ति बिल्डर्स एण्ड कॉलोनाइजर के संचालक धनीराम बंजारे एवं उनकी पत्नी पार्वती बंजारे द्वारा बनवाए गए हैं। आपको बता दें कि इन मकानों के निर्माण के लिए न तो नक्शा पास हुआ है न ही भूमि का डायवर्सन हुआ है। कॉलोनाइजर द्वारा नियम-कायदों को ताक पर रखकर मकानों का निर्माण कराया गया है। खास बात यह है कि जिस मार्ग पर यह कालोनी स्थित है, उसके सामने कलेक्टर बंगला है। बावजूद इसके, कलेक्टर समेत अन्य प्रशासनिक अफसरों की नजर इस अवैध कालोनी पर नहीं पडऩा कई गंभीर सवालों को जन्म देता है। वहीं कुछ दिनों पूर्व इस मामले की शिकायत नगर एवं ग्राम निवेश के सहायक संचालक तक पहुंचने पर उन्होंने कड़ा रूख अपनाने के बजाय दीप्ति बिल्डर एण्ड कॉलोनाइजर के संचालक को नोटिस देकर औपचारिकता निभा दी है, जबकि इस कॉलोनाइजर के खिलाफ एक नहीं, दर्जनों शिकायतें हैं, जो नगर एवं ग्राम निवेश से लेकर नगरपालिका, एसडीएम कार्यालय तथा कलेक्टोरेट में धूल फांक रहे हैं। जानकारों की मानें तो नगर एवं ग्राम निवेश विभाग ने जिला मुख्यालय जांजगीर में कॉलोनी विकसित करने के लिए अब तक किसी कॉलोनाइजर को अनुमति ही नहीं दी है। कॉलोनाइजरों के आवेदन नगर एवं ग्राम निवेश विभाग के रायपुर स्थित संचालक कार्यालय में पड़े हुए हैं। ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि जब कालोनी निर्माण के लिए दीप्ति बिल्डर एण्ड कॉलोनाइजर को किसी तरह की अनुमति ही नहीं मिली है तो आखिर कॉलोनाइजर ने किस आधार पर थोक के भाव में मकानों का निर्माण कराकर कॉलोनी विकसित की है। उल्लेखनीय है कि शासन के प्रावधान के तहत एक एकड़ से अधिक जमीन की प्लाटिंग कर खरीदी-बिक्री पर 15 प्रतिशत जमीन गरीबों के लिए छोडऩी होती है, लेकिन दीप्ति बिल्डर एण्ड कॉलोनाइजर के संचालक ने शासन के इस प्रावधान को तो रद्दी की टोकरी में ही डाल दिया है। बहरहाल, दीप्ति बिल्डर एण्ड कॉलोनाइजर के संचालक द्वारा जरूरी औपचारिकता पूरी करने के झंझट से बचने के लिए प्रशासनिक अफसरों से सांठगांठ कर जिला मुख्यालय जांजगीर में अवैध कॉलोनी बसा दी है, जिसका खामियाजा उस कॉलोनी में मकान और प्लाट खरीदने वालों को आगामी दिनों में निश्चित रूप से भुगतना होगा।
नगरपालिका प्रशासन भी पंगु
अवैध कालोनी एवं अवैध बसाहट जिला मुख्यालय जांजगीर के लिए बड़ी समस्या बन चुकी है। दीप्ति बिल्डर एण्ड कॉलोनाइजर के संचालक धनीराम बंजारे एवं पार्वती बंजारे जैसे शातिर लोगों के चक्कर में पडक़र भोले-भाले लोग भले ही अवैध रूप से निर्मित मकान और जमीन की खरीदी-बिक्री कर लेते हैं। फिर बाद में उन्हीं लोगों द्वारा नगरपालिका पर सडक़, बिजली, पानी जैसी मूलभूत सुविधाओं के लिए दबाव बनाया जाता है। इससे नगरपालिका पर आर्थिक बोझ बढ़ता है, जबकि कालोनाइजर एक्ट के तहत मूलभूत सुविधाएं बिल्डर को देनी है। जिला मुख्यालय जांजगीर में इतना सबकुछ खुलेआम होने के बावजूद नगरपालिका प्रशासन भी पंगु बना बैठा है। इससे एक बात तय है कि कॉलोनाइजर से नगरपालिका के अधिकारियों की तगड़ी सांठगांठ है।
हो सकती है एफआईआर
नगरपालिका प्रशासन यदि चाहे तो कॉलोनाइजर से इस संबंध में राशि जमा करवा सकता है। वहीं इसका पालन नहीं करने पर कॉलोनाइजर के खिलाफ एफआईआर दर्ज करा सकता है। हालांकि, जिला मुख्यालय जांजगीर में इस मामले में अब तक एक भी कार्रवाई नहीं हुई है। आपको बता दें कि प्रावधान के तहत एक एकड़ से अधिक जमीन की प्लाटिंग कर खरीद-बिक्री पर 15 प्रतिशत जमीन गरीबों के लिए छोडऩी होती है, लेकिन दीप्ति बिल्डर एण्ड कॉलोनाइजर के संचालक ने जहां कालोनी बसाई है, वहां इस प्रावधान का पालन नहीं हुआ है।
क्या कहता है नियम
अवैध कालोनी में मकान और जमीन खरीदने पर धारा 292 (च) के तहत् खरीद, बिक्री के समस्त करार और नामांतरण शून्य हो जाएगा। सूचना प्रकाशित कर उक्त कालोनी को नगरीय प्रशासन विभाग अधिग्रहित कर लेगा। नियमानुसार, प्लाटिंग कर मकान और जमीन की खरीद-बिक्री के लिए टाउन एंड कंट्री प्लानिंग से पहले जमीन का ले-आउट मंजूर कराना होता है। ले-आउट मंजूर होने के बाद नगरीय प्रशासन विभाग यानी नगरपालिका, नगर पंचायत अथवा नगर निगम वहां रोड, नाली, बिजली, पानी के विस्तार के लिए अनुमति देगा। इस प्रक्रिया के पूरी होने के बाद ही मकान और जमीन की बिक्री हो सकती है। आम आदमी के लिए यह प्रक्रिया इतनी जटिल है कि लोग इससे बचना चाहते है़। वहीं यह काम बिल्डर का है, लेकिन इस पर ध्यान नहीं दिया जाता और प्लाटिंग कर मकान और जमीन बेच दी जाती है।
सात साल की सजा का प्रावधान
छत्तीसगढ़ नगर पालिका अधिनियम 1956 की धारा 292 (ग) के अनुसार अवैध कालोनी निर्माण के उद्देश्य से अपनी भूमि को या अन्य किसी व्यक्ति की भूमि को इस अधिनियम या इस निमित्त बनाए गए नियमों में बनाए गए अनुध्यात अपेक्षाओं को भंग कर भूखंडों में विभाजित करता है, वह अवैध कालोनी निर्माण का अपराध करता है। उपधारा 3 के अनुसार, जो कोई अवैध व्यपवर्तन का या अवैध कालोनी निर्माण का अपराध करता है, इसके लिए प्रेरित करता है, उसे कम से कम तीन साल और अधिकतम सात वर्ष की सजा तथा न्यूनतम एक लाख रुपए के जुर्माने से दण्डित किया जा सकता है।
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