जांजगीर-चांपा. सक्ती तहसीलदार ने जगदीश प्रसाद बंसल को आगामी 26 मार्च तक शासकीय भूमि से अवैध निर्माण हटाने एवं कब्जा मुक्त करने संबंधी नोटिस जारी की है। तहसीलदार न्यायालय से 24 मार्च को जारी नोटिस में कहा गया है कि न्यायालय आयुक्त बिलासपुर संभाग के प्रकरण क्रमांक 190/ब-121/2015-16 एवं तहसील न्यायालय सक्ती के राजस्व प्रकरण क्रमांक 11/ब-121/ 2015-16 के अनुसार ग्राम सक्ती की शासकीय भूमि खसरा नंबर 1213 में से 20 बाय 54 कड़ी पर आपके द्वारा निर्मित पक्का मकान को अवैध ठहराया गया है। इसलिए उक्त अवैध निर्माण को 26 मार्च को 10.30 बजे तक स्वयं हटा लें तथा कब्जा मुक्त कर दें। अन्यथा शासन द्वारा कब्जा हटाने की कार्यवाही की जाएगी एवं अतिक्रमण स्थल पर खड़ी संपत्ति राजसात कर ली जाएगी।
उल्लेखनीय है कि सक्ती निवासी जगदीश बंसल पिता स्व. रामफल बंसल द्वारा न्यायालय अतिरिक्त कलेक्टर जांजगीर-चांपा के पुनरीक्षण प्रकरण क्रमांक 30/ब-12/2015-16 में पारित आदेश 4 जून 2016 के विरूद्ध छत्तीसगढ़ भू-राजस्व संहिता 1959 की धारा 50 अंतर्गत कमिश्नर न्यायालय में अर्जी पेश की गई थी। आपको बता दें कि विचारण न्यायालय के समक्ष शासकीय भूमि पर अतिक्रमण संबंधी शिकायत पर कार्यवाही प्रारंभ करते हुए 15 अक्टूबर 2015 को आवेदक की आपत्ति पर टीम गठित कर राजस्व निरीक्षक को 16 अक्टूबर 2015 को सीमांकन किए जाने के लिए आदेशित किया गया। इसके बाद 21 अक्टूूबर 2015 को तहसीलदार द्वारा राजस्व निरीक्षक के सीमांकन प्रतिवेदन फील्ड बुक, नक्शा एवं खसरा पांचसाला के आधार पर पुनरीक्षणकर्ता द्वारा अतिक्रमण भूमि के 20 बाय 54 कड़ी में बने मकान को धारा 248 के तहत बेदखल किए जाने का आदेश पारित किया गया, जिसके विरूद्ध आवेदक द्वारा अधीनस्थ न्यायालय में पुनरीक्षण प्रस्तुत किए जाने पर अतिक्रमणकर्ता एवं शासन पक्ष को नहीं सुने जाने, विचारण न्यायालय के द्वारा अनुविभागीय अधिकारी को लिखे पत्र में शासकीय भूमि एवं निजी भूमि को स्पष्ट नहीं दर्शाये जाने आदि के कारण विचारण न्यायालय के आदेश दिनांक 21 अक्टूबर 2015 को निरस्त कर तहसीलदार को प्रश्नाधीन भूमि का समुचित रूप से सीमांकन किए जाने का आदेश दिनांक 4 जून 2016 पारित किया गया, जिसे इस पुनरीक्षण में चुनौती दी गई थी।
पुनरीक्षणकर्ता के तर्क के अनुसार उसके स्वामित्व एवं आधिपत्य की भूमि खसरा नंबर 1209/1, रकबा 2 एकड़ एवं खसरा नंबर 1211, रकबा 0.65 एकड़ कुल रकबा 2.65 एकड़ भूमि जिस पर नगरपालिका परिषद से विधिवत् भवन निर्माण अनुज्ञा प्राप्त कर डायवर्टेड अंश पर निर्मित भवन शासकीय भूमि पर निर्मित होने का शिकायकर्ता द्वारा शिकायत किए जाने पर तहसीलदार द्वारा आदेश दिनांक 16 अक्टूबर 2015 एवं 21 अक्टूबर 2015 को निर्माण कार्य को अंश भाग में होना घोषित कर हटाने के लिए आदेशित किया गया था, जिसके पुनरीक्षण में अधीनस्थ न्यायालय ने समुचित रूप से सीमांकन कराया। इसके बाद संहिता के तहत कार्यवाही के लिए अग्रेत्तर होने का आदेश किया है। प्रकरण में तर्क दिया गया कि अधीनस्थ न्यायालय का निर्देश अंश विधि विपरीत है। सीमांकन दिनांक 10 दिसम्बर 2007 को अनदेशा कर पुन: सीमांकन का आदेशित किया गया है, जो विधि विपरीत है, क्योंकि दिनांक 10 दिसम्बर 2007 का सीमांकन को किसी भी पक्षकार द्वारा चुनौती नहीं देने से अखण्डनीय है। राजस्व निरीक्षक के प्रतिवेदन दिनांक 19 अक्टूबर 2015 को अनदेखा किया गया है। नगरपालिका परिषद से अनुज्ञा पर उसकी सीमा में निर्माण किया गया है, जिसे हटाने का अधिकार राजस्व न्यायालय को नहीं है।
ऐसे में अधीनस्थ न्यायालय के निर्देश को विलोपित किए जाने का निवेदन किया गया, जबकि आपत्तिकर्ता द्वारा कहा गया कि शासकीय मरघट भूमि 1197 वर्गफीट पर पक्का मकान बनाकर कब्जा किया गया है। अन्य शासकीय भूमि पर भी आवेदक द्वारा कब्जा किया गया है। सभी पक्षों को सुनने के बाद कमिश्नर ने प्रकरण का अवलोकन किया। उसके बाद अधीनस्थ न्यायालय द्वारा पारित आदेश दिनांक 4 जून 2016 एवं विचारण न्यायालय के आदेश दिनांक 16 अक्टूूबर 2015 एवं 21 अक्टूबर 2015 का परिशीलन किया गया। कमिश्नर ने अपने आदेश में कहा कि प्रश्नाधीन प्रकरण शासकीय भूमि पर अतिक्रमण पर आधारित है। विचारण न्यायालय द्वारा शासकीय भूमि पर अतिक्रमण संबंध शिकायत पर जांच की कार्यवाहीं में पुनरीक्षणकर्ता के द्वारा जवाब पेश किया गया है। वाद स्थल का गठित टीम द्वारा सीमांकन किया गया है। विचारण न्यायालय के प्रकरण में राजस्व निरीक्षक के प्रतिवेदन दिनांक 19 अक्टूबर 2015 में निर्माणाधीन मकान शासकीय भूमि में आने का प्रतिवेदन दिया गया है। प्रकरण में आए स्थितियों के आधार पर तहसीलदार द्वारा निर्माणग्रस्त विवादित अंश को शासकीय भूमि होना विनिश्चित किया गया है, जो उचित प्रतीत होता है। ऐसी स्थिति में विचारण न्यायालय द्वारा पारित आदेशों के हस्तक्षेप योग्य नहीं होने से यथावत् रखा जाता है। साथ ही अधीनस्थ न्यायालय का आदेश निरस्त करते हुए यह पुनरीक्षण समाप्त किया जाता है।
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