सोमवार, 21 मई 2018

सरकारी ससुराल से जिला अस्पताल पहुंचा नशे का सौदागर ‘शिवम्’, पेइंग वार्ड में सप्ताहभर से फरमा रहा आराम, मिल रहा सभी ऐशो-आराम

राजेंद्र राठौड़@जांजगीर-चांपा. कहते हैं अमीर हो या गरीब, कानून सबके लिए बराबर है। गुनाहगार को उसके जुर्म की सजा मिलती ही है, लेकिन नशे के सौदागर शिवम् अग्रवाल और उसके परिजनों की रसूख के आगे कानून की परिभाषा को चुटकियों में बदल दिया गया है। लाखों की नशीली दवाओं की तस्करी के मामले में फंसे शिवम् अग्रवाल को सलाखों के पीछे रखने के बजाय पिछले एक सप्ताह से जांजगीर के जिला अस्पताल के पेइंग वार्ड में सारी सुख-सुविधाएं मुहैया करवाई जा रही है। इससे एक ओर जहां कायदे-कानून की खुलेआम धज्जियां उड़ रही है। वहीं जेल प्रशासन की कार्यशैली पर सवाल उठने लगे हैं। 

उल्लेखनीय है कि सक्ती पुलिस ने बीते 4 मई को सक्ती में संचालित ओम गैरेज के संचालक शिवम अग्रवाल उर्फ  हनी पिता लक्ष्मीनारायण अग्रवाल सहित चार आरोपियों को ढाई लाख रुपए की नशीली दवाओं के साथ पकड़ा था। पुलिस ने मुख्य आरोपी शिवम अग्रवाल सहित इस मामले के सभी आरोपियों के खिलाफ  एनडीपीएस एक्ट की धारा 21 (बी) के तहत अपराध दर्ज करते हुए उन्हें जेल भेजा था। गिरफ्तारी के एक सप्ताह बाद यानी 12 मई को जिला जेल जांजगीर के सहायक जेल अधीक्षक ने बीमार होने का हवाला देकर मुख्य आरोपी शिवम अग्रवाल को जिला अस्पताल में शिफ्ट करवा दिया, तब से वह जिला अस्पताल के पेइंग वार्ड क्रमांक 2 में एसी की हवा में आराम फरमा रहा है। इसकी जानकारी होने पर मीडियाकर्मियों ने 21 मई की दोपहर जब जिला अस्पताल पहुंचकर जायजा लिया तो पता चला कि स्वयं के खर्च पर नशे का सौदागर शिवम अग्रवाल बीते 12 मई से पेइंग वार्ड क्रमांक 2 में भर्ती है। पेइंग वार्ड का मुआयना करने पर पता चला कि नशे का सौदागर शिवम अग्रवाल को वहां वे तमाम् सुविधाएं उपलब्ध करवाई जा रही है, जो घर जैसी है। वार्ड में एसी की ठंडी हवा खाता शिवम अग्रवाल गद्देदार बेड पर लेटा हुआ था। कैमरे में जैसे ही उसकी तस्वीर कैद की गई, वैसे ही उसकी आंखे खुल गई। नींद से जागे शिवम अग्रवाल से जब पूछा गया कि उसे क्या तकलीफ है और किसलिए यहां भर्ती है तो उसने बताया कि गैस्टीक के साथ ही उसे दर्द एवं सांस लेने में तकलीफ है। उसकी सुरक्षा में तैनात आरक्षक ने बताया कि एक दिन पहले ही उसकी ड्यूटी यहां लगी है, इसलिए उसे शिवम की बीमारी के संबंध में जानकारी नहीं है। पेइंग वार्ड का मुआयना करने पर पता चला कि नशे का सौदागर शिवम अग्रवाल को वहां वे सब सामग्री उपलब्ध करवाई जा रही है, जो जेल में कभी नहीं मिलती। वहां उसे घर जैसा भोजन एवं अन्य पकवान और दैनिक उपयोग की सामग्री सहज ढंग से उपलब्ध हो रही है। बहरहाल, नशीली दवाओं के सौदागर शिवम अग्रवाल को जेल की चारदिवारी के बीच रखने के बजाय बीमार बताकर जिला अस्पताल में व्हीआईपी सुविधा मुहैया कराया जाना कई सवालों को जन्म दे रहा है। इससे एक बात साफ हो गई है कि जो रसूखदार हैं, उनके लिए कायदे-कानून कोई मायने ही नहीं रखते हैं।
 


खेल में गिरोह की खास भूमिका

जिला जेल जांजगीर में वर्तमान में करीब पौने तीन सौ बंदी निरूद्ध हैं, जिनमें से कई रसूखदार हैं। ऐसे रसूखदारों को जिला जेल से जिला अस्पताल पहुंचाने में एक गिरोह काम कर रहा है। बताया जाता है कि गिरोह के लोगों की सांठगांठ जेल अधीक्षक से है। गिरोह के लोग संंबंधित बंदी के परिजनों से मोटी रकम लेकर उसे बीमार बताते हुए जिला अस्पताल के पेइंग वार्ड में शिफ्ट करवा देते हैं और यहां उन्हें व्हीआईपी सुविधाएं दी जाती है। जिस बंदी के बीमार होने का हवाला देकर उसे जिला अस्पताल में भर्ती करवाया जाता है, नियमत: उसका जिला जेल में ही विशेषज्ञों से स्वास्थ्य परीक्षण कराया जाना चाहिए, जिससे पता चल सके कि वह वास्तव में अस्पताल में दाखिल कराने लायक है अथवा नहीं, लेकिन यहां रसूख के दम पर नियम-कायदों को रौंदा जा रहा है। कानून के जानकारों की मानें तो रसूखदार बंदी को जिला अस्पताल में भर्ती करवाने के बाद उसके परिजन बड़े वकीलों को पकडक़र उसकी जमानत के लिए प्रयास करते हैं। इस बीच यदि जमानत मिल जाती है तो बंदी अस्पताल से सीधे अपने घर पहुंच जाता है और यदि जमानत नहीं मिलती है तो जिला अस्पताल में भर्ती रखने की समयावधि लगातार बढ़वाई जाती है।
 


जिला जेल में रामराज कायम

खोखराभाठा स्थित जिला जेल में व्यवस्था सुधरने के बजाय लगातार बिगड़ती जा रही है। कुछ महीने पहले जिला एवं सत्र न्यायाधीश के निर्देश पर कई न्यायाधीश एवं कलेक्टर तथा पुलिस अधीक्षक ने जिला जेल का निरीक्षण किया था, तब वहां कई खामियां मिली थी। इसके लिए जेल अधीक्षक को खूब फटकार भी लगी थी। इसके बाद भी व्यवस्था नहीं सुधर रही है। दिलचस्प बात यह है कि जिला जेल में निरूद्ध कई बंदी ऐसे हैं, जो वास्तव में गंभीर बीमारी से पीडि़त हैं, लेकिन उन्हें स्वास्थ्य सुविधा मुहैया करवाने के मामले में जेल प्रशासन रूचि नहीं ले रहा है, जबकि हाईप्रोफाइल मामलों के बंदियों को जेल में एक-दो दिन रखने के बाद बीमार बताकर सीधे जिला अस्पताल पहुंचा दिया जा रहा है, ताकि उसके खानपान से लेकर अन्य सुविधाओं में किसी तरह की कमी न हो। इतना सब कुछ खुलेआम हो रहा है, इसके बाद भी जिला प्रशासन और पुलिस महकमा अपनी आंखों पर पट्टी बांधा हुआ है। वहीं गरीब और जरूरतमंद बंदियों के हित की बात करने वाला जिला विधिक सेवा प्राधिकरण भी केवल शिविर की औपचारिकता निभाने में जुटा है।

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